→ लिंगानुपात से तात्पर्य प्रति हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या से है। भारत में यह अनुपात 940 है, जिसका मुख्य कारण देश में लैंगिक असमानता का होना है क्योंकि परंपरागत रूप से समाज में महिलाओं को कमजोर वर्ग के रूप में देखा जाता रहा है। वे घर और समाज दोनों जगहों पर शोषण, अपमान और भेदभाव से पीडि़त है।
→ अमर्त्य सेन द्वारा भारत में महिलाओं की कम होती संख्या की चुनौतियों के बारे में लिखने के लगभग 28 साल बाद आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 ने इसे देश की सबसे प्रमुख समस्याओं में से एक माना है। हालाँकि यह सर्वेक्षण कई महिला सशक्तीकरण संकेतकों में सुधार के बावजूद यह भी प्रदर्शित करता है कि भारत में कम होते लिंगानुपात ने लैंगिक असमानता को जन्म दिया है। देश में 63 मिलियन महिलाएँ लापता हैं तथा 21 मिलियन लड़कियाँ अवाँछनीय हैं। यह एक चिंताजनक स्थिति है जो लैंगिक समानता के मुद्दे पर भारत को रवांडा जैसे देश, जिसका इतिहास नरसंहार तथा भेदभाव से परिपूर्ण है, के पीछे खड़ा करती है। ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट, 2016 के अनुसार, रवांडा लैंगिक समानता में पाँचवें स्थान पर था, जबकि भारत इस वर्ष इस सूची में 87वें स्थान पर था जो कि 2017 में खिसक कर 108 हो गया।
→ देश में इस समस्या के समाधान हेतु सरकार द्वारा व्यापक स्तर पर अनेक जागरूकता अभियान चलाए गए हैं जिनमें ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ सुकन्या समृद्धि योजना तथा कन्या भ्रूण हत्या को ‘राष्ट्रीय शर्म’ घोषित करना जैसे अनेक कार्यक्रम शामिल हैं। लेकिन ये सारे अभियान केवल सूचना प्रदान करने तक ही सीमित रहे।
→ भारतीय प्रधानमंत्री ने इस वर्ष राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर जब कन्या भ्रूण हत्या को ‘राष्ट्रीय शर्म’ घोषित किया था और ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना को आगे बढ़ाने की बात कही थी तो ऐसी स्थिति में यह प्रतिबिंबित करना और जानना आवश्यक है कि पिछले 30 वर्षों में भारत में लैंगिक अनुपात को बढ़ावा देने के लिये जिन प्रभावी नीतियों को विकसित किया गया उनका कितना प्रभाव हुआ? क्या केवल सूचना अभियान से व्यवहार में परिवर्तन लाया जा सकता है?
→ 2011 के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में शिक्षित लोगों के अवैध रूप से लिंग आधारित गर्भपात में शामिल होने की अधिक संभावना है। नीति आयोग द्वारा इस वर्ष फरवरी माह में जारी स्वास्थ्य सूचकांक यह दर्शाता है कि हाल के वर्षों में पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र सहित देश के 21 बड़े राज्यों में से 17 में लिंगानुपात में गिरावट आई है, केवल बिहार, पंजाब और उत्तर प्रदेश में लैंगिक अनुपात में सुधार हुआ है।
→ उपर्युक्त आँकड़े दर्शाते हैं कि भले ही सरकार ने लोगों की मानसिकता को बदलने के लिये जागरूकता कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित किया है लेकिन यह मुद्दा इतना जटिल है कि मात्र सूचनाएँ देना परिवारों के व्यवहार को बदलने के लिये पर्याप्त नहीं है। विशेष रूप से उन स्थानों पर जहाँ सामाजिक व आर्थिक मुद्दों पर बेटों को बेटियों की तुलना में अधिक प्राथमिकता दी जाती है।
→ इस संबंध में सूचना अभियानों के अतिरिक्त व्यवहार परिवर्तन को प्रोत्साहित करने के लिये सरकारों द्वारा एक और आम दृष्टिकोण प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण को अपनाया गया है। इसके लिये पश्चिम बंगाल और हरियाणा सहित कई अन्य राज्य सरकारों ने परिवारों को लड़कियों की शिक्षा के प्रति प्रेरित करने के लिये और इसके माध्यम से लैंगिक समानता में सुधार करने के लिये कन्याश्री, लाडली और देवीरूपक जैसे सशर्त और बिना शर्त नकद हस्तांतरण योजनाएँ लागू की हैं। हालाँकि इस बात के कम ही साक्ष्य हैं कि नकद हस्तांतरण योजनाएँ लिंगानुपात को सुधारने में सफल रही है, फिर भी कुछ साक्ष्य दर्शाते हैं कि व्यवहार परिवर्तन के लिये नकद हस्तांतरण योजनाएँ उपयोगी सिद्ध हो सकती हैं।
→ यद्यपि अनेक जागरूकता अभियानों के साथ नकद हस्तांतरण व्यवहार परिवर्तन के लिये उपयोगी माध्यम सिद्ध हो सकता है, लेकिन इन कार्यक्रमों के दीर्घकालिक प्रभावों का आकलन करने के लिये कुछ अध्ययनों तथा कठोर प्रयासों की आवश्यकता है जिनका लक्ष्य लिंग अनुपात में गिरावट की समस्या को हल करना हो।