उत्तर :
भूमिका -
चक्रवात के प्रकार (Types of Cyclones)– अवस्थिति के आधार पर चक्रवात दो प्रकार के होते हैं-
→ शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति तथा प्रभाव क्षेत्र शीतोष्ण कटिबंध अर्थात् मध्य अक्षांशों में होता है। ये चक्रवात उत्तरी गोलार्द्ध में केवल शीत ऋतु में उत्पन्न होते हैं, जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में जलीय भाग के अधिक होने के कारण ये वर्ष भर उत्पन्न होते रहते हैं।
→ ये चक्रवात अंडाकार, गोलाकार, अर्द्ध-गोलाकार तथा ‘V’ आकार के होते हैं, जिस कारण इन्हें ‘निम्न गर्त’या ‘ट्रफ’कहते हैं।
→ ये चक्रवात दोनों गोलार्द्धों में 35° से 65° अक्षांशों के मध्य पाए जाते हैं, जिनकी गति पछुआ पवनों के कारण प्राय: पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर रहती है। ये शीत ऋतु में अधिक विकसित होते हैं।
→ इनकी उत्पत्ति ठंडी एवं गर्म, दो विपरीत गुणों वाली वायुराशियों के मिलने से होती है।
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के मुख्य क्षेत्र –
→ उत्तरी अटलांटिक महासागर
→ भूमध्य सागर
→ उत्तरी प्रशांत महासागर
→ चीन सागर
2. उष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclones)-
→ उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के महासागरों में उत्पन्न तथा विकसित होने वाले चक्रवातों को ‘उष्ण कटिबंधीय चक्रवात’कहते हैं। ये 5° से 30° उत्तर तथा 5° से 30° दक्षिणी अक्षांशों के बीच उत्पन्न होते हैं। ध्यातव्य है कि भूमध्य रेखा के दोनों ओर 5° से 8° अक्षांशों वाले क्षेत्रों में न्यूनतम कोरिऑलिस बल के कारण इन चक्रवातों का प्राय: अभाव रहता है।
→ उष्ण कटिबंधीय चक्रवात अत्यधिक विनाशकारी वायुमंडलीय तूफान होते हैं, जिनकी उत्पत्ति कर्क एवं मकर रेखाओं के मध्य महासागरीय क्षेत्र में होती है, तत्पश्चात् इनका प्रवाह स्थलीय क्षेत्र की तरफ होता है।
→ ITCZ के प्रभाव से निम्न वायुदाब के केंद्र में विभिन्न क्षेत्रों से पवनें अभिसरित होती हैं तथा कोरिऑलिस बल के प्रभाव से वृत्ताकार मार्ग का अनुसरण करती हुई ऊपर उठती हैं। फलत: वृत्ताकार समदाब रेखाओं के सहारे उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति होती है।
→ व्यापारिक पूर्वी पवन की पेटी का अधिक प्रभाव होने के कारण सामान्यत: इनकी गति की दिशा पूर्व से पश्चिम की ओर रहती है।
(ये चक्रवात सदैव गतिशील नहीं होते हैं। कभी-कभी ये एक ही स्थान पर कई दिनों तक स्थायी हो जाते हैं तथा तीव्र वर्षा करते हैं।)
→ कैरेबियन
→ चीन सागर
→ हिंद महासागर
→ ऑस्ट्रेलिया
(ध्यान दें - उष्ण कटिबंधीय चक्रवात के मध्य/केंद्र में शांत क्षेत्र पाया जाता है, जिसे ‘चक्रवात की आँख’कहते हैं, जबकि शीतोष्ण चक्रवात में इसका अभाव रहता है।)
(नोट - भूमध्य रेखा के समीप जहाँ दोनों गोलार्द्धों की व्यापारिक पवनें मिलती हैं, उसे ‘अंत:उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र/तल’(ITCZ) कहते हैं। इस अभिसरण क्षेत्र/तल का उत्तरी व दक्षिणी दोनों गोलार्द्धों में विस्थापन होता है। ग्रीष्म ऋतु में ITCZ का विस्थापन भूमध्य रेखा से उत्तरी गोलार्द्ध में होता है। चूँकि, इस अभिसरण तल पर व्यापारिक पवनों का अभिसरण व आरोहण होता है, फलत: सतह पर निम्न वायुदाब का विकास होता है।)