GS Paper-3 Indian Economy (भारतीय अर्थव्यवस्था) Part-1 (Q-10)

GS PAPER-3 (भारतीय अर्थव्यवस्था) Q-10
 
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Q.10 - कृषि विकास में भूमि सुधारों की भूमिका की विवेचना कीजिये। भारत में भूमि सुधारों की सफलता के लिये उत्तरदायी कारकों को चिह्नित कीजिये।
 
उत्तर :
भूमिका:
भू-सुधारों का अर्थ है भू-संपत्ति का न्यायसंगत पुनर्वितरण, जिससे कृषि मज़दूरों, भूमिहीन लोगों को भी भूमि का मालिकाना हक प्राप्त हो सकें।

विषय-वस्तु
भारत में भू-संपत्तियों की असमानता पर चर्चा करते हुए भूमि सुधारों के बारे में -
  ब्रिटिश काल में भारत में भू-संपत्तियों में अत्यधिक असमानता थी, जिसका मुख्य कारण औपनिवेशिक शासन की अन्यायपूर्ण नीतियाँ थीं, जिसकी वज़ह से एक तरफ ज़मींदारों एवं संपन्न वर्ग के पास अत्यधिक ज़मीनें थी, जबकि ज़्यादातर कृषक भूमिहीन थे। भूमि के इस असमान वितरण ने कृषि क्षेत्र को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया।
  अत: कृषि में संरचनात्मक परिवर्तन एवं उत्पादन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भूमि सुधारों को व्रियान्वित करने का प्रयास किया गया। भारत में स्वतंत्रता पश्चात् से निम्न भूमि सुधार हुए हैं, जिनसे कृषि विकास में सहायता मिली है।
  ज़मींदारी प्रथा को समाप्त कर दिया गया, जिस कारण से भूमिहीन किसानों को भी ज़मीनें प्राप्त हो सकीं।
  काश्तकारी कानून को अधिनियमित किया गया। इसके तहत किसानों को कार्यकाल की सुरक्षा प्रदान की गई एवं काश्तकारों को स्वामित्व अधिकार दिये गए। इस कानून से काश्तकारों को स्वयं की भूमि प्राप्त हो सकी।
चकबंदी से जमींदारों से बची ज़मीन भूमिहीनों को उपलब्ध हो सकी।
  भूदान तथा ग्रामदान आंदोलन से भी भूमि के समताकारी बँटवारे को बढ़ावा मिला, इस कारण नई कृषि भूमि प्राप्त करने वाले काश्तकार ज़्यादा उत्साह से कृषि करने लगे।
  सहकारीकरण से छोटी कृषि जोतों वाले किसान एक साथ मिलकर कृषि करने लगे, जिससे कृषि उत्पादन में तकनीकों का अच्छी तरह से उपयोग होने लगा।

भारत में भूमि सुधारों की सफलता के लिये उत्तरदायी कारकों पर चर्चा -
भारत में भूमि सुधारों की सफलता के लिये उत्तरदायी कारक-
  भूमि सुधारों से संबंधित कानूनों को 9वीं अनुसूची में शामिल करने तथा संपत्ति के अधिकार को समाप्त करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति के कारण ज़मींदारों के न्यायालय में जाने के अवसर समाप्त हो गए, साथ ही इच्छानुसार संपत्ति रखने का अधिकार भी समाप्त हो गया।
  भूमि राज्य सूची का विषय है। ये भूमि सुधार मुख्यत: केरल तथा पश्चिमी बंगाल की सरकारों के प्रयत्न से इन राज्यों में लागू हो पाए।
  बढ़ती साक्षरता तथा जनचेतना के कारण भी लोगों में भूमि अधिकार तथा संवैधानिक अधिकारों की मांग बढ़ी। इस कारण भी भूमि सुधार संभव हो सका।
  अनेक गैर-सरकारी संगठन, जो कृषकों की सहायता हेतु कार्य करते हैं, के कारण भी भूमि सुधारों को बढ़ावा मिला।
  कृषि उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये सहकारी कृषि को बढ़ावा मिला, जिससे भूमि सुधार हुए।
 
निष्कर्ष:
उपरोक्त भूमि सुधार एवं उसके सकारात्मक प्रभावों के बावजूद कुछ कमियाँ व्याप्त है, जिसके कारण ऐसा माना जाता है कि भारत में भूमि सुधार संबंधी कानूनों का व्रियान्वयन सही ढंग से नहीं हुआ है। आज भी भारत में बड़ी संख्या में भूमिहीनता, जोतों का छोटा होना एवं प्रतिव्यक्ति कम उत्पादकता बड़ी समस्या बनी हुई है, जिनके समाधान हेतु एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता है।

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