GS Paper-3 Disaster Management (आपदा प्रबंधन) Part-1 (Q-5)

GS PAPER-3 (आपदा प्रबंधन) Q-5
 
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Q.5 - विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं को समग्र रूप से जलवायु परिवर्तन की विभीषिका के अंतर्गत देखा जा सकता है।कथन का विश्लेषण कीजिये। (200 शब्द)
 
उत्तर :
  जलवायु किसी भी स्थान के दीर्घकाल की मौसमी घटनाओं का औसत होती है। जलवायु में स्थानीय, प्रादेशिक वैश्विक स्तर पर निरंतर परिवर्तन होते रहते हैं। परंतु तीव्र औद्योगीकरण नगरीकरण की अंधी दौड़ में मनुष्य ने वायुमंडलीय प्रक्रमों में तीव्र गति से परिवर्तन करना प्रारंभ कर दिया। इसका प्रभाव प्रकृति की मौलिक संरचना पर पड़ना स्वभाविक था जिसने जलवायु परिवर्तन जैसी विभीषिका की स्थिति पैदा की। जलवायु परिवर्तन की इसी विभीषिका ने विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं को प्रेरित किया है।
  जलवायु परिवर्तन की विभीषिका की नींव पश्चिमी देशों ने उसी समय रखने का कार्य कर दिया था जब औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई थी। पश्चिम के विकसित देशों ने अपने विकास के आरंभिक समय के दौरान ही कोयला, पेट्रोलियम नेचुरल गैसों का दोहन इतनी अधिक मात्रा में किया कि धरती का तापमान तेज़ी से बढ़ने लगा। अभी पृथ्वी का औसत तापमान लगभग 15° सेल्सियस है, पर्यावरणविदों के अनुसार यह धीरे-धीरे बढ़ रहा है।
  मानव की भौतिकतावादी उपभोक्तावादी गतिविधियों ने पृथ्वी के पर्यावरण में कार्बन डाईआक्साइड गैस का अति संचय कर दिया जिसने मौसमी गतिविधियों, समुद्री हवाओं तथा मानसूनी पवनों की गतिविधियों को प्रभावित किया। परिणामत: धरती पर बाढ़, सूखा, जैसी प्राकृतिक आपदाएँ निरंतर बढ़ती जा रही हैं। धरती पर बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं के कारण मानव जीवन के समक्ष भी खतरा उत्पन्न हो गया है।
  जलवायु परिवर्तन जनित प्राकृतिक आपदाओं की विभीषिका को निरंतर वैश्विक स्तर पर देखा जा सकता है जिसका ताज़ा उदाहरण केपटाउन में उपस्थित जल संकट है, जहाँ कम वर्षा होने के कारण जल की आपूर्ति रोक देने जैसा संकट विद्यमान हो गया है। भारत में भी प्राकृतिक आपदाओं की विभीषिका को केदारनाथ त्रासदी जैसी घटनाओं में देखा जा सकता है। इसके अलावा चेन्नई बिहार की बाढ़ से लेकर मानसून की अनियमितता भी चिंता का विषय बनी हुई है। प्राकृतिक आपदाएँ हमेशा से पृथ्वी के किसी--किसी क्षेत्र में आती रहती हैं लेकिन वर्तमान दौर में आने वाली आपदाएँ अपने स्वरूप में कहीं अधिक भयानक तीव्र होती जा रही हैं जिसका प्रमुख कारण जलवायु परिवर्तन है।
  जलवायु परिवर्तन जनित प्राकृतिक आपदाओं के कारण मनुष्य को जल, वायु मृदा तीनों स्तर पर संकट का सामना करना पड़ सकता है। अतिवृष्टि अनावृष्टि के कारण मृदा की सेहत पर विपरीत असर पड़ेगा जिससे आगामी समय में मानव जाति को खाद्यान्न संकट का सामना करना पड़ सकता है।
 
  स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन मानव जाति द्वारा उत्पन्न समस्या है, जिसके प्रतिफलस्वरूप प्रकृति प्रदत्त आपदाओं का सामना मनुष्य को करना पड़ रहा है। प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती तीव्रता बारंबारता ने मनुष्य जाति के समक्ष अस्तित्व का संकट खड़ा कर दिया है। अत: आवश्यकता है प्रकृति के संरक्षण की, ताकि मानव जाति के भविष्य को बचाया जा सके।

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