GS Paper-3 Science-Tech. (विज्ञान-प्रौद्योगिकी) Part- 1 (Q-1)

GS PAPER-3 (विज्ञान-प्रौद्योगिकी) Q-1
 
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Q.1 - केंद्र सरकार द्वारा जेनेटिकली मॉडिफाइड खाद्य पदार्थों के निर्माण, वितरण, बिक्री और निर्यात के संबंध में खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम की धारा 22 के तहत किसी विनियमन का अधिसूचित किया जाना क्या भारत में जीएम खाद्य पदार्थों के विनियमन में उत्पन्न निर्वात की ओर इशारा करता है? समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये
 
उत्तर :
भूमिका:
जेनिटिकली मॉडिफाइड ऑर्गेनिज्म (GMO) वह जीव है जिसका जेनेटिक मैटीरियल, जेनेटिक इंजीनियरिंग तकनीक से बदला जाता है। इस प्रक्रिया में कुछ खास जीनों को एक जीव से दूसरे जीव में स्थानांतरित किया जाता है ताकि दूसरे जीव में भी वे विशेषताएँ उत्पन्न हो जाए।

विषय-वस्तु
जीएमओ के बारे में चर्चा-
  इस तकनीक का प्रयोग मुख्यत: खेती में किया जाता है एवं इसकी सहायता से फसलों में कीटरोधी गुणों को डालने के अलावा इनकी पोषक एवं खरपतवार नाशक क्षमता भी बनायी जाती है। जीएम फसलों की इन विशेषताओं के अलावा इसके कई नकारात्मक प्रभाव भी है जिन पर अतिशीघ्र ध्यान देने की आवश्यकता है।
  हालाँकि जीएम खाद्य पदार्थों से मानवों के स्वास्थ्य पर होने वाले दुष्प्रभावों पर कोई दीर्घकालिक अध्ययन नहीं हुआ है। परंतु विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं संयुक्त राष्ट्र कृषि एवं स्वास्थ्य संगठन द्वारा गठित एक संस्था मूल्यांकन रिपोर्ट के अनुसार जीएम खाद्य पदार्थों के विषाक्त होने एवं अन्य एलर्जनों से अभिक्रिया कर एलर्जिक प्रतिक्रियाएँ पैदा करने की संभावना अधिक रहती है। किसी फसल के जीनोम में बदलाव होने से उसकी पोषण क्षमता पर भी असर पड़ सकता है।

भारत में जीएम फसलों से संबंधित विनियमनों पर चर्चा -
  जहाँ तक जीएम फसलों के विनियमन का प्रश्न है तो 1990 में पर्यावरण एवं जलवायु मंत्रालय के अंतर्गत गठित की गई जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रैजल कमिटी द्वारा बीटी बैगन एवं जीएम सरसों के व्यावसायिक उत्पादन की अनुमति प्रदान की गई थी परंतु इसके बावजूद सरकार इस दिशा में कोई प्रयास नहीं कर सकी। लेकिन संसाधित और पैक किये गए खाद्य उत्पादों के लिये अनुमोदन प्रक्रिया में छिद्र होने के कारण जीएमओ खाद्य पदार्थों का भारत में प्रवेश करने का रास्ता साफ माना जाता है।
  2006 में खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम बनने के बाद जीईएसी ने स्वयं को लिविंग मॉडिफाई ऑर्गेनिज्म (LMO) की स्वीकृति तक ही सीमित कर लिया एवं प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के अनुमति संबंधी कार्य एफएसएसआई (FSSAI) को सौंप दिया। 2016 तक जीईएसी ही प्रसंस्कृत भोजन को विनियमित करता रहा एवं व्यवहार में FSSAI की कोई जवाबदेही तय नहीं की गई। जबकि खाद्य सुरक्षा कानून की धारा 22 कहती है कि जीएम भोजन का तब तक उत्पादन, विक्रय, प्रसंस्करण, आयात नहीं हो सकता जब तक FSSAI इन्हें विनियमित नहीं करता।
  2013 में लीगल मेट्रोलॉजी (पैकेज्ड कमोडिटीज) नियम, 2011 में संशोधन के द्वारा जीएम भोजन के फूट पैकिट पर ‘‘जीएम’’ टर्म के साथ लेबलिंग अनिवार्य कर दिया गया। हालाँकि इसे अनुचित माना गया क्योंकि भारत में जीएम भोजन स्वीकृत नहीं है।
  इससे इस अवधारणा को बल मिला कि जीएम को भोजन के रूप में स्वीकृति मिल गई।
  खाद्य पदार्थ की प्रिभाषा के संदर्भ में हम देखते हैं कि खाद्य सुरक्षा एवं संरक्षण अधिनियम के अनुच्छेद 3 के अनुसार हर वो वस्तु खाद्य पदार्थकी श्रेणी में आती है जो मानव उपभोग के लिये बनायी गयी है, चाहे वह प्रसंस्कृत हो या नहीं। जीएम खाद्य पदार्थ भी इसी श्रेणी में आते हैं। यह स्पष्ट करता है कि जहाँ तक भारत में जीएम खाद्य पदार्थों के विनियमन का सवाल है उसके लिये सिर्फ FSSAI ही जिम्मेदार है।
  FSSAI ने 2018 में नया ड्राफ्ट लेबलिंग रेगुलेशन बनाया जिसका मकसद जीएम भोजन की लेबलिंग संबंधी समस्या का हल करना था। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने 2008 में जेनेटिकीली इंजीनियर्ड पौधों से उत्पन्न खाद्य पदार्थों की सुरक्षा के आकलन के लिये दिशा निर्देश विकसित किये थे। परंतु इसे तभी अपनाया जा सकेगा जब FSSAI जीएम खाद्य पदार्थों के लिये एक विनियमन (रेगुलेशन) तैयार करेगा। हालाँकि विनियमन की प्रक्रिया जारी है और जीएम खाद्य विनियमन संबंधी मसौदे को जल्द लाया जा सकेगा। अभी तक इसमें केवल जीएम खाद्य उत्पादों की लेबलिंग संबंधी नियमों की रूपरेखा ही तैयार हुई है। साथ ही साथ FSSAI द्वारा विनियमन हेतु तैयार किये मसौदे के संदर्भ में यह देखना होगा कि यह महंगा हो और इसे लागू करना बोझिल हो।
 
निष्कर्ष:
इस प्रकार हम देखते हैं कि डब्ल्यूएचओं ने भी माना है कि चूँकि विभिन्न जीएमओ में अलग-अलग जीन होते हैं जिन्हें कई तरीकों से अंत: स्थापित किया जाता है, इसलिये ऐसी परिस्थिति में देशों को विभिन्न आबादी और भौगोलिक क्षेत्रों में जीएम खाद्य पदार्थों की सुरक्षा का मूल्यांकन अवश्य किया जाना चाहिये।

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