GS Paper-2 Indian Polity (राजव्यवस्था) Part-1 (Q.2)

GS PAPER-2 (भारतीय राजनीति) Q-2
 
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Q.2 - सरकारी गोपनीयता कानून’ (Official Secrets Act), 1923 के बारे में बताएँ। क्या यह कानून लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ है? स्पष्ट करें। (250 शब्द)
 
उत्तर :
भूमिका
औपनिवेशिक शासन में अधिकारियों द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा और जासूसी के मुद्दों पर सूचना को गोपनीय रखने के लिये यह कानून लाया गया था। मूल रूप से यह इंडियन ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट, 1889 के रूप में जाना जाता था। 1923 में शासन में गोपनीयता बरतने लायक सभी मामलों को इसके तहत लाया गया था।
स्वतंत्रता के बाद भी यह कानून बरकरार रहा। 1967 में इसे व्यापक रूप से संशोधित किया गया। इसके बाद इसकी समय-समय पर समीक्षा होती रही है। सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के परिप्रेक्ष्य में सरकारी गोपनीयता कानून, 1923 की समीक्षा करने के लिये केंद्र सरकार ने 2015 में एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया था। इसने सिफारिश की कि सरकारी गोपनीयता कानून को अधिक पारदर्शी और RTI अधिनियम के अनुरूप बनाया जाए।

कानून की व्याख्या:- 
        यह अधिनियम मुख्य रूप से कई भाषाओं में छपने वाले अखबारों की आवाज़ को दबाने के लिये बनाया गया था, जो ब्रिटिश राज की नीतियों का विरोध कर देश में राजनीतिक चेतना जागृत कर रहे थे और पुलिस की कार्रवाई का उन पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता था। इसे सरकारी कर्मचारियों से लेकर सामान्य नागरिकों तक के लिये लागू किया गया। यह कानून जासूसी, साझा 'गुप्त' जानकारी, वर्दी का अनधिकृत उपयोग, जानकारी रोकना, निषिद्ध/ प्रतिबंधित क्षेत्रों में सशस्त्र बलों के कार्यों में हस्तक्षेप को दंडनीय अपराध बनाता है।

इस कानून की प्रमुख धाराएँ
  इस अधिनियम की विभिन्न धाराओं में महत्त्वपूर्ण परिभाषाओं तथा अन्य प्रावधानों का उल्लेख है। इसकी धारा में जासूसी या गुप्तचरी से संबंधित निषेधात्मक कार्यों के बारे में बताया गया है। इसके तहत देश की सुरक्षा तथा राष्ट्रहित के विरुद्ध कार्य के उद्देश्य से दंडनीय माने गए कार्यो को बताया गया है।
  इस अधिनियम की धारा में उन जानकारियों का उल्लेख है जिन्हें सरकार गुप्त मानती है। यह धारा सीधे तौर पर प्रेस के विरुद्ध नहीं है, लेकिन प्रेस इससे बहुत ज़्यादा प्रभावित होती है। इसका दायरा बहुत व्यापक होने के कारण सरकार को विभिन्न मामलों में इसका उपयोग करने का अधिकार है।

लोकतंत्र की मूल भावना और सरकारी गोपनीयता कानून, 1923
सरकारी गोपनीयता कानून का उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य को उसके शत्रुओं से बचाना था, लेकिन अब इसका इस्तेमाल सवाल उठाने वाले नागरिकों को चुप रखने के लिये किया जा सकता है। यह कानून अनुच्छेद 19(1) का अतिक्रमण करता है, जो प्रत्येक नागरिक को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार देता है। यह कानून सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम के खिलाफ काम करता प्रतीत होता है और भ्रष्टाचार के लिये पर्याप्त आधार तैयार करता है।
विधि आयोग, 1971 में इस कानून का अवलोकन करने वाला पहला आधिकारिक संस्थान था। आयोग ने कहा, “केवल इसलिये कि कोई परिपत्र गुप्त या गोपनीय है, उसे इस कानून के प्रावधानों के तहत नहीं लाना चाहिये।" 2006 में दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (Administrative Reforms Commission-ARC) ने इस कानून को लोकतांत्रिक समाज में पारदर्शी शासन की राह में बाधा बताया।
 
निष्कर्ष:- 
       प्रश्नानुसार उपयुक्त निष्कर्ष लिखें।

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