GS Paper-2 Social Justice (सामाजिक न्याय) Part-1 (Q.4)

GS PAPER-2 (सामाजिक न्याय) Q-4
 
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Q.4 - डॉक्टरों के लिये अनिवार्य ग्रामीण सेवा कितनी प्रासंगिक है? चर्चा कीजिये।
 
उत्तर :
भारत को गाँवों का देश कहा जाता है तथा आज भी लगभग 70 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या गाँवों में निवास करती है। किंतु गाँवों के संदर्भ में चिकित्सकों के उदासीन रवैये के चलते स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएँ अत्यंत ख़राब स्थिति में हैं। एक आँकड़े के अनुसार शहरी क्षेत्रों में प्रति 100,000 लोगों के लिये 176 डॉक्टर हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में 100,000 लोगों के लिये 8 से भी कम डॉक्टर उपलब्ध हैं जबकि हर साल भारत में 269 निजी और सरकारी मेडिकल कॉलेजों से लगभग 31,000 डॉक्टर स्नातक करते हैं।
उच्चतम न्यायालय (SC) ने केंद्र सरकार और भारतीय चिकित्सा परिषद को सुझाव दिया है कि सरकारी संस्थानों से प्रशिक्षित डॉक्टरों के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा (कुछ समय तक) को अनिवार्य किया जाए।
डॉक्टरों के लिये अनिवार्य ग्रामीण सेवा की प्रासंगिकता
अनिवार्य सेवा सार्वजनिक हित में है और समाज के वंचित वर्गों के लिये लाभकारी है।
चूँकि सरकारी मेडिकल कॉलेजों को चलाने के लिये अत्यधिक वित्त की आवश्यकता पड़ती है, जबकि छात्रों से ली जाने वाली फीस निजी मेडिकल कॉलेजों की तुलना में बहुत कम है।
बहुत से होनहार चिकित्सक देश से शिक्षा प्राप्त कर अच्छे करियर के लिये विदेशों में चले जाते हैं, इस तरीके के प्रावधान से ऐसे चिकित्सकों की क्षमता और ज्ञान का लाभ देश के नागरिकों को मिल पाएगा।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत समाज के वंचित वर्गों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिये भी अनिवार्य ग्रामीण सेवा प्रासंगिक है।
इस कदम से देश के लोगों के जीवन स्तर में सुधार होगा तथा मानव विकास सूचकांक में भी भारत की स्थिति में बेहतर होगी।
   
    हालाँकि डॉक्टरों हेतु अनिवार्य ग्रामीण सेवा का भी चिकित्सीय वर्ग द्वारा निम्न आधारों पर विरोध किया जाता है:
डॉक्टरों के अनुसार ऐसी शर्तें उनके मानवाधिकारों का हनन करती हैं।
यह बंधुआ मज़दूरी जैसा प्रतीत होता है जो कि संवैधानिक अधिकारों का भी उल्लंघन है।
ये शर्तें उनके करियर में बाधा भी उत्पन्न करती हैं, जो कि अनुच्छेद 19 में दिये गए आजीविका के अधिकार के विरुद्ध है।
इसे डॉक्टर संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटी-कृत उनके अधिकारों का हनन भी मानते हैं।
वस्तुतः कुछ लोगों की गरिमा को सामुदायिक गरिमा से संतुलित करते हुए, तराजू को सामुदायिक गरिमा के पक्ष में झुकना चाहिये। अतः कुछ राज्यों द्वारा चिकित्सकों हेतु लागू किये गए अनिवार्य बांड की तर्ज पर संपूर्ण देश में डॉक्टरों के लिये अनिवार्य ग्रामीण सेवा लागू की जानी चाहिये ताकि गाँवों में निवास करने वाली वंचित आबादी को मूलभूत स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान की जा सकें।

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