GS Paper-3 Indian Economy (भारतीय अर्थव्यवस्था) Part-1 (Q-2)

GS PAPER-3 (भारतीय अर्थव्यवस्था) Q-2
 
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Q.2 - प्रवासियों द्वारा अर्थव्यवस्था में पर्याप्त योगदान देने के बावजूद, उनके योगदान के लाभार्थी राज्य/शहर उनके लिये अनुकूल नज़र नहीं आते हैं। टिप्पणी कीजिये। (250 शब्द)
 
उत्तर :
  बेहतर रोज़गार के अवसर की तलाश, शिक्षा एवं स्वास्थ्य की उपलब्धता से उज्ज्वल भविष्य के निर्माण एवं स्थानीय स्तर पर होने वाली अशांति से बचने के लिये लोग अंतर्राष्ट्रीय एवं अंतर्राज्यीय प्रवासन करते हैं।
  प्रवासी अर्थव्यवस्था की वृद्धि एवं विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। कई अध्ययन बताते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सीमापार आवागमन ने वैश्विक उत्पादन में काफी इजाफा किया है। विकसित देशों में प्रवासी श्रमिकों की निर्भरता बहुत अधिक है। मैकेंजी ग्लोबल संस्थान के अनुसार 2000 से 2014 तक प्रवासी श्रमिकों ने उत्तरी अमेरिका, पश्चिमी यूरोप, ओशेनिया एवं खाड़ी देशों के कुल श्रमिकों में 40 से 80 फीसदी का योगदान दिया है।
  लगभग 1.6 करोड़ भारतीय विदेशों में प्रवास करते हैं। वे वहाँ की कुल जीडीपी में 430 से 490 अरब डॉलर का योगदान करते हैं। ये प्रवासी भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 2016 में राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पादन के 3 प्रतिशत के बराबर धन इन्होंने भारत में भेजा। साथ ही भारतीय उद्योग एवं अवसंरचना के क्षेत्र में भी काफी निवेश किया हुआ है। विदित हो कि प्रवासी भारतीय प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रमुख स्त्रोत के रूप में विद्यमान हैं। इसके अलावा भी कई ऐसे माध्यम हैं जिसके द्वारा प्रवासियों द्वारा प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से योगदान किया जा रहा है।
  यदि अंतर्राज्यीय प्रवासन की बात करें तो महाराष्ट्र के मुंबई, दिल्ली एवं पश्चिम बंगाल के कोलकता के विकास में प्रवासियों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है। फरीदाबाद, लुधियाना एवं सूरत जैसे विकसित शहरों में तो 55 प्रतिशत अन्य राज्यों से आए प्रवासी श्रमिक ही काम करते हैं।
 
  प्रवासियों के महत्त्वपूर्ण योगदान के बावजूद प्राप्तकर्त्ता राज्यों/शहरों द्वारा उन्हेें प्रशंसात्मक दृष्टि से नहीं देखा जाता है। इसका कारण निम्न मनोवृत्ति है-
  प्रवासी स्थानीय लोगों की नौकरियाँ हड़प लेते हैं।
  नागरिक सुविधाओं एवं आधारभूत सुविधाओं पर बोझ बन जाते हैं।
  स्थानीय संस्कृति को नुकसान पहुँचाते हैं।
  इसके आलावा आपराधिक गतिविधियों में उनका सम्मिलित पाया जाना भी इसका कारण है।
  इन सब कारणों से ही यदि विदेशों से कभी-कभी प्रवासियों पर हमलों की खबर आती है, तो वहीं भारत में मुबंई में उत्तर भारतीयों के खिलाफ प्रचार इसका प्रमुख उदाहरण है। भूमिपुत्र संकल्पना का उद्भव इसी का परिणाम है।
 
  वस्तुत: प्रवासियों के प्रति आव्रोश एवं दुर्भावना का कोई ठोस आधार नहीं होता है बल्कि यह स्थानीय लोगों के भय एवं कुंठा की उपज होती है। अत: यदि स्थानीय स्तर पर प्रवासी श्रमिकों से मिलने वाले लाभों के बारे में जागरूक किया जाए, विकास में उनके योगदान को बताया जाए तथा संकीर्ण राजनीति को बंद किया जाए तो अधिकांश समस्या समाप्त हो जाएगी।

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