भारतीय समाज में व्याप्त विभिन्न सामाजिक समस्याओं में बंधुआ मज़दूरी एक प्रमुख समस्या है। आज भी यह समस्या भारत में औपनिवेशिक और सामंतवाद की झलक प्रस्तुत करती है। इस प्रकार की मज़दूरी में व्यक्ति निश्चित समय तक सेवाएँ देने के लिये बाध्य होता है। ऐसा वह साहूकारों या ज़मींदारों से लिये गए ऋण को चुकाने के लिये करता है। एक अनुमान के मुताबिक, वर्तमान में भारत में लगभग 32 लाख बंधुआ मज़दूर हैं, इनमें से अधिकांश ऋणग्रस्तता के शिकार हैं।
कारण:
→ जैसा कि आंकड़ों से स्पष्ट है, अधिकांश बंधुआ मज़दूर ऋणग्रस्त हैं, ऐसे में गरीबी सबसे प्रमुख समस्या के रूप में उभर कर सामने आती है। इसके साथ ही रोज़गार न मिल पाना, भूमिहीनता, ऋण देने के लिये संस्थागत ढाँचे का न होना आदि कई आर्थिक कारण हैं।
→ भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी सामाजिक-धार्मिक प्रथाओं का पालन करना बाध्यकारी होता है, भले ही उनकी आर्थिक-दशा कैसी भी हो। विवाह के समय दहेज़, मृत्यु के बाद श्राद्ध, जन्म के समय दावत और विभिन्न धार्मिक अवसरों पर होने वाले कर्मकांड आदि बाध्यकारी प्रथाएँ हैं, जिससे व्यय में अचानक वृद्धि होती है। इन परिस्थितियों ने गरीबी की विवशता के चलते बंधुआ मज़दूरी को जीवित रखा है।
→ आज भी भारत में कुछ प्रभुत्वशाली जातियों में निचले तबक़े को दबाकर रखने की प्रवृत्ति विद्यमान है। समाज में मौजूद कमज़ोर तबक़ा अत्याचार के भय से मामूली भत्ते या मुफ्त में काम करने को बाध्य होता है।
→ सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों का कमज़ोर क्रियान्वयन भी बंधुआ मज़दूरी की जीवंतता के लिये उत्तरदायी है।
उन्मूलन के लिये उठाए गए कदम:
→ संविधान में मूल अधिकारों के अंतर्गत अनुच्छेद 21 और 23 तथा सरकार द्वारा बंधुआ मज़दूरी व्यवस्था (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 बनाए आदि गए।
→ उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार 1997 से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भी इस पर निगरानी रखने व इस संबंध में न्यायालय को रिपोर्ट देने हेतु उत्तरदायी बनाया गया है।
→ केंद्र सरकार द्वारा 2016 में ‘बंधुआ मज़दूरों के पुनर्वास के लिये केंद्रीय क्षेत्र योजना’ को नए तरीके से संचालित किया जा रहा है। इसके अंतर्गत वयस्क श्रमिकों के पुनर्वास हेतु 20,000 रूपए की राशि को बढ़ाकर 1 लाख कर दिया गया है।
→ उपर्युक्त कदमों के सही क्रियान्वयन से निश्चित ही सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो सकते हैं, किंतु सिविल सोसाइटी और NGO की भागीदारी के साथ-साथ श्रमिक संघों को सुदृढ़ करना इस दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रयास हो सकता है।