GS Paper-1 Geography (भूगोल) Part-1 (Q-1)

GS PAPER-1 (भूगोल) Q-1

GS Paper-1 Geography (भूगोल)

Q.1- ज्वालामुखी क्रियाओं से निर्मित स्थलाकृतियों के बारे में उदाहरण सहित व्याख्या करें। (250 शब्द)

उत्तर:
ज्वालामुखी उद्गार दो प्रकार के होते है- दरारी उद्गार और केंद्रीय उद्गार, इनसे कई प्रकार की स्थलाकृतियाँ बनती है जो इस प्रकार हैं-

दरारी उद्गार द्वारा निर्मित स्थलाकृतियाँ
  ज्वालामुखी के दरारी उद्भेदन के समय भू-गर्भ से बेसाल्टिक मैग्मा भू-पटल पर चादरीय स्वरूप में प्रकट होता है तथा तरल होने के कारण शीघ्रता से क्षैतिज रूप में धरातल पर जम जाता है। यदि इसकी परत की गहराई अधिक होती है तो उसे लावा पठार कहते हैं।
उदाहरण- भारत का दक्कन का लावा पठार, अमेरिका का कोलंबिया का लावा पठार। किंतु, यदि वृहद् क्षेत्र में फैले लावा की परत की गहराई कम हो तो उसे लावा का मैदानकहते हैं। उदाहरणार्थ- स्नेक रिवर प्लेन (यूएए), प्री-कैंब्रियन शील्ड (उत्तरी कनाडा)

केंद्रीय उद्गार से निर्मित स्थलाकृतियाँ
  ज्वालामुखी उद्गार के समय निकास नली के चारों ओर लावा के शंक्वाकार रूप में जमने से शंकु का निर्माण हेाता है, जबकि इसका मध्य भाग एक कीपाकार गर्त के रूप में विकसित होता है। इनमें उपस्थित पदार्थों की रासायनिक संरचना एवं संघटन के अनुसार ज्वालामुखी शंकु कई प्रकार के होते हैं, जैसे- सिंडर शंकु, मिश्रित या कंपोजिट शंकु, लावा शंकु, परिपोषित शंकु आदि।

ज्वालामुखी लावा के जमाव से निर्मित आंतरिक स्थलाकृतियाँ
    ज्वालामुखी लावा के जमाव से निर्मित आंतरिक स्थलरूपों में बैथोलिथ, किसी भी प्रकार की चट्टान में मैग्मा का गुम्बदनुमा जमाव है। अपेक्षाकृत कम गहराई पर अवसादी चट्टानों में मैग्मा के अलग-अलग प्रकार से ठंडा होने क्री प्रक्रिया में कई प्रकार के स्थल रूप देखे जाते हैं। इनमें लैकोलिथ उत्तल ढाल वाला एवं लोपोलिथ अवतल बेसिन में लावा जमाव है। फैकोलिथ मोड़दार पर्वतों के अभिनतियों अपनतियों में अभ्यांतरिक लावा जमाव है। इसी प्रकार सिल डाइक क्रमश: लावा के क्षैतिज लंबवत् जमाव हैं। सिल की पतली परत को शीट एवं डाइक के छोटे स्वरूप को स्टॉक कहते हैं।
  (गीज़र/GEYSER गर्म जलस्रोत होते हैं जिनका ज्वालामुखी के दरारी उद्गार क्रिया से तो संबंध होता है किन्तु ये जलीय प्रकृति का निर्माण है कि स्थलीय प्रकृति का निर्माण। इसी प्रकार धुआंरा/ FUMAROLE गैसीय प्रकृति के उद्गार हैं कि स्थलीय प्रकृति के निर्माण।)
निष्कर्ष-
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि ज्वालामुखी के उद्गार और उनसे बनने वाली स्थलाकृतियों में व्यापक भिन्नता पाई जाती है और यह भिन्नता अलग-अलग दशाओं में अलग-अलग परिणाम देती है। यह परिणाम अलग-अलग विशेषताओं के कारण अलग-अलग नामों से जाने जाते हैं।


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