Q.14 - ‘थाट’ से आप क्या समझते हैं? ‘थाट’ एवं ‘राग’ की मौलिक विशेषताओं पर तुलनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत कीजिये।
उत्तर :
→ ‘थाट’ (संगीत) हिन्दुस्तानी संगीत की एक विधा है, जिसमें सदैव सात भिन्न अलाप होते हैं। इन्हें स्वर कहा जाता है। जैसे- सा, रे, गा, मा आदि। ‘थाट’ कला हिन्दुस्तानी संगीत का आधार है। भारतीय संगीत की प्रमुख पुस्तक ‘संगीत रत्नाकार’ में तत्कालीन संगीत की कुछ तकनीकी शब्दावलियों का प्रयोग किया गया है। जैसे ‘ग्राम’ और ‘मूर्घना’। 11वीं शताब्दी के पश्चात् भारतीय संगीत पर मध्य और पश्चिम एशिया का प्रभाव पड़ने लगा। 15वीं शताब्दी तक यह प्रभाव स्पष्ट हो गया। फलस्वरूप ‘ग्राम’ और ‘मूर्घना’ का स्थान ‘थाट’ ने ले लिया।
‘थाट’ संगीत की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
→ इसमें सात स्वर होते हैं। (सा रे गा मा पा धा नि)
→ यह आधुनिक राग बिलावल का मेल आरोह है।
→ वर्तमान में उक्त सात स्वरों के अतिरिक्त पाँच अन्य स्वर भी प्रचलित हैं।
→ ‘राग’ ‘थाट’ की अपेक्षा मौलिक संगीत विधा है। इस रूप में ‘राग’ और ‘थाट’ में समानताओं और विषमताओं को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है-
→ सभी ज्ञात ‘राग’ 12 ‘थाट’ स्वरों का ही समूह है। इस रूप में ‘थाट’ व्युत्पन्न है, जबकि ‘राग’ मौलिक है।
→ जनजातियों और लोकगीतों ने अपनी रचनात्मक अभिव्यक्ति को रागों में व्यक्त किया है। इन्हीं रागों को कालांतर में संगीत विज्ञानियों ने स्वरग्राम या सरगम (थाट) में वर्गीकृत किया।
→ विभिन्न रागों पर विदेशी प्रभाव पड़ने से ही ‘थाट’ का आविर्भाव हुआ
→ इस प्रकार ‘थाट’ और ‘राग’ संगीत विधा में भेद किया जा सकता है। ‘थाट’ संगीत विधा विशुद्ध रूप से भारतीय नहीं है किंतु यह भारतीय कला में इतनी रच गई कि अब भारत की पहचान बन गई है और हिन्दुस्तानी संगीत की महत्त्वपूर्ण विधा है।