GS Paper-1 Indian Society (भारतीय समाज) Part-1 (Q-1)

GS PAPER-1 (भारतीय समाज) Q-1
 
GS Paper-1 Indian Society (भारतीय समाज)

 Q.1- ‘‘भारत जहाँ एक ओर आर्थिक-राजनीतिक प्रगति की ओर अग्रसर है, वहीं देश में आज भी लैंगिक असमानता की स्थिति गंभीर बनी हुई है।’’ इस कथन के आलोक में भारत में लैंगिक असमानता के कारकों तथा इस असमानता को समाप्त करने के संदर्भ में किये गए प्रयासों को रेखांकित करें। (250 शब्द)
उत्तर :
वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक ने वैश्विक स्तर पर भी लैंगिक असमानता को समाप्त करने में सैकड़ों वर्ष लगने की संभावना व्यक्त की है। इन्ही परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में अमेरिका की राजनीतिज्ञ हिलैरी क्लिंटन ने कहा कि- महिलाएँ संसार में सबसे अप्रयुक्त भंडार हैं
किसी समाज की प्रगति का मानक केवल वहाँ का परिमाणात्मक विकास नहीं होना चाहिये। समाज के विकास में भाग ले रहे सभी व्यक्तियों के मध्य उस विकास का समावेशन भी होना ज़रूरी है। इसी परिदृश्य में नवीन विकासवादियों ने विकास की नवीन परिभाषा में वित्तीय, सामाजिक और राजनीतिक समावेशन को आत्मसात किया है।

भारत में लैंगिक असमानता के कारक:
  सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रगति के बावजूद वर्तमान भारतीय समाज में पितृसत्तात्मक मानसिकता जटिल रूप में व्याप्त है। इसके कारण महिलाओं को आज भी एक ज़िम्मेदारी समझा जाता है। महिलाओं को सामाजिक और पारिवारिक रूढ़ियों के कारण विकास के अवसर कम मिलते हैं, जिससे उनके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं हो पाता है। सबरीमाला और तीन तलाक जैसे मुद्दों पर सामाजिक मतभेद पितृसत्तात्मक मानसिकता को प्रतिबिंबित करता है।
  भारत में आज भी व्यावहारिक स्तर (वैधानिक स्तर पर सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार संपत्ति पर महिलाओं का समान अधिकार है) पर पारिवारिक संपत्ति पर महिलाओं का अधिकार प्रचलन में नहीं है, इसलिये उनके साथ विभेदकारी व्यवहार किया जाता है।
  राजनीतिक स्तर पर पंचायती राज व्यवस्था को छोड़कर उच्च वैधानिक संस्थाओं में महिलाओं के लिये किसी प्रकार के आरक्षण की व्यवस्था नहीं है।
  वर्ष 2017-18 के नवीनतम आधिकारिक आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था में महिलाओं की श्रम शक्ति और कार्य सहभागिता दर कम है। ऐसी परिस्थितियों में आर्थिक मापदंड पर महिलाओं की आत्मनिर्भरता पुरुषों पर बनी हुई है।
  देश के लगभग सभी राज्यों में वर्ष 2011-12 की तुलना में वर्ष 2017-18 में महिलाओं की कार्य सहभागिता दर में गिरावट देखी गई है। इस गिरावट के विपरीत केवल कुछ राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों जैसे-मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, चंडीगढ़ और दमन-दीव में महिलाओं की कार्य सहभागिता दर में सुधार हुआ है।
  महिलाओं के रोज़गार की अंडर-रिपोर्टिंग की जाती है, अर्थात् महिलाओं द्वारा परिवार के खेतों और उद्यमों पर कार्य करने को तथा घरों के भीतर किये गए अवैतनिक कार्यों को सकल घरेलू उत्पाद में नहीं जोड़ा जाता है।
  शैक्षिक कारक जैसे मानकों पर महिलाओं की स्थिति पुरुषों की अपेक्षा कमज़ोर है। हालाँकि लड़कियों के शैक्षिक नामांकन में पिछले दो दशकों में वृद्धि हुई है तथा माध्यमिक शिक्षा  स्तर पर लैंगिक समानता की स्थिति प्राप्त हो रही है लेकिन अभी भी उच्च शिक्षा तथा व्यावसायिक शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं का नामांकन पुरुषों की तुलना में काफी कम है।

भारत में महिला असमानता को समाप्त करने के प्रयास:
  समाज की मानसिकता में धीरे-धीरे परिवर्तन रहा है जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं से संबंधित मुद्दों पर गंभीरता से विमर्श किया जा रहा है। तीन तलाक, हाज़ी अली जैसे मुद्दों पर सरकार तथा न्यायालय की सक्रियता के कारण महिलाओं को उनका अधिकार प्रदान किया जा रहा है।
  राजनीतिक प्रतिभाग के क्षेत्र में भारत लगातार अच्छा प्रयास कर रहा है, इसी के परिणामस्वरूप वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक- 2020 के राजनीतिक सशक्तीकरण और भागीदारी मानक पर अन्य बिंदुओं की अपेक्षा भारत को 18वाँ स्थान प्राप्त हुआ।
  भारत ने मेक्सिको कार्ययोजना, नैरोबी अग्रदर्शी रणनीतियाँ और लैगिक समानता, विकास एवं शांति पर संयुक् राष्ट्र महासभा सत्र द्वारा 21वीं शताब्दी के लिये अंगीकृत "बीजिंग डिक्लरेशन एंड प्लेटफार्म फॉर एक्शन को कार्यान्वित करने के लिये और कार्रवाइयाँ एवं पहलें" जैसी लैंगिक समानता की वैश्विक पहलों की अभिपुष्टि की है।
  बेटी बचाओ बेटी पढाओ’, ‘वन स्टॉप सेंटर योजना’, ‘महिला हेल्पलाइन योजनाऔर महिला शक्ति केंद्रजैसी योजनाओं के माध्यम से महिला सशक्तीकरण का प्रयास किया जा रहा है। इन योजनाओं के क्रियान्वयन के परिणामस्वरूप लिंगानुपात और लड़कियों के शैक्षिक नामांकन में प्रगति देखी जा रही है।
  आर्थिक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हेतु मुद्रा और अन्य महिला केंद्रित योजनाएँ चलाई जा रही हैं।

  लैंगिक समानता का सिद्धांत भारतीय संविधान की प्रस्तावना, मौलिक अधिकारों, मौलिक कर्त्तव्यों और नीति निर्देशक सिद्धांतों में प्रतिपादित है। संविधान महिलाओं को केवल समानता का दर्जा प्रदान करता है अपितु राज् को महिलाओं के पक्ष में सकारात्मक भेदभाव के उपाय करने की शक्ति भी प्रदान करता है। प्रकृति द्वारा किसी भी प्रकार का लैंगिक विभेद नहीं किया जाता है। समाज में प्रचलित कुछ तथ्य जैसे- पुरुषों की अपेक्षा महिलाएँ जैविक रूप से कमज़ोर होती हैं इत्यादि केवल भ्रांतियाँ हैं। दरअसल महिलाओं में विशिष्ट जैविक अंतर, विभेद नहीं बल्कि प्रकृति प्रदत्त विशिष्टताएँ हैं, जिनमें समाज का सद्भाव और सृजन निहित हैं।

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