GS Paper-3 Internal Security (आंतरिक सुरक्षा) Part-1 (Q-4)

GS PAPER-3 (आंतरिक सुरक्षा) Q-4
 
Internal Security (आंतरिक सुरक्षा)

Q.4- जबकि यह सच है कि सशस्त्र संघर्षों में से कई के साथ भारत सरकार की बातचीत हुई है या शांति समझौते के माध्यम से वे समाप्त हो गए हैं; पर यह भी सच है कि पूर्वोत्तर भारत की शांति और विकास में अनेक चुनौतियाँ विद्यमान हैं। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
 
उत्तर :
भारत में सशस्त्र संघर्षों का लंबा इतिहास रहा है। आज़ादी के बाद भारत के विभिन्न क्षेत्रों में सशस्त्र संघर्ष हुए। इसमें पंजाब का पृथकतावादी आंदोलन, पूर्वोत्तर भारत का अलगाववादी आंदोलन, वामपंथी उग्रवाद तथा कश्मीर के लड़ाके प्रमुख रूप से शामिल रहे हैं।
भारत ने सशस्त्र संघर्षों की समाप्ति के लिये बहुआामी रणनीति अपनाई, जिसमें सर्वप्रमुख शांति समझौता तथा प्रभावित क्षेत्रों में विकासात्मक गतिविधियों को बढ़ावा देना है। इसका परिणाम यह हुआ कि कई गुट भारत सरकार के साथ या तो बातचीत की मेज़ पर आए या शांति समझौते पर हस्ताक्षर के साथ समाप्त हो गए, जैसे:
  पंजाब में हुए पृथकतावादी आंदोलन को समाप्त करने के लिये ऑपरेशन ब्लू स्टारचलाया गया तथा उसे बाद में शांति की मेज़ पर आने के लिये विवश किया गया। फलत: 1985 में शांति वार्त्ता समझौता के माध्यम से पंजाब में यह आंदोलन समाप्त हो गया।
  इसी तरह पूर्वोत्तर भारत में भारतीय सेना एवं मिज़ो विद्रोहियों के बीच लगभग एक दशक तक झड़पें होती रहीं जिसका कोई समाधान नहीं निकला। अंतत: 1986 में शांति समझौते के माध्यम से मिज़ो अलगाववादियों को राजनैतिक ढाँचे में शामिल किया गया तथा मिज़ो नेशनल फ्रंट अलगाववादी संघर्ष छोड़ने पर राजी हो गए।
  कुछ सशस्त्र संघर्ष शांति समझौते के माध्यम से अभी संघर्ष विराम की स्थिति में हैं। इसका सर्वप्रमुख उदाहरण है नगालैंड में एमएससीएन-आईएम के साथ शांति समझौता हस्ताक्षर। इसके माध्यम से भारत सरकार ने वृहद नागालिम की मांग को अब तक दबा कर रखा है।
  पूर्वोत्तर भारत के सामरिक दृष्टि से महत्त्वूपर्ण तथा नृजातीय विविधता एवं सांस्कृतिक दृष्टि से संवेदनशील होने के कारण भारत सरकार ने इस क्षेत्र में शांति एवं विकास के लिये कई कार्य किये हैं जैसे- स्थानीय स्वायत्त प्रशासन प्रदान करना, वन अधिकार संरक्षण कानून, 2006 के माध्यम से आदिवासियों के परंपरागत अधिकारों को मान्यता देना, विशेष राज्य का दर्जा प्रदान कर इनके आर्थिक विकास को तेज़ करना आदि।
 
लेकिन शांति और विकास की दिशा में अनेक चुनौतियाँ भी हैं जैसे-
  देश के अन्य शहरों में पूर्वोत्तर के लोगों को भेदभाव तथा नस्लीय हिंसा का शिकार होना पड़ता है, जिससे उनमें अलगाववाद की भावना प्रबल होती है।
  बाहरी लोगों का विरोध जिन्हें पूर्वोत्तर के लोग अपने संसाधनों पर अतिव्रमण मानते हैं। इससे भूमि पुत्र की संकल्पना मज़बूत होती है जैसे-इनर लाइन परमिट का मुद्दा
  अफस्पा (AFSPA) के कारण वहाँ पर होने वाला मानवाधिकारों का उल्लंघन उनके क्षोभ को बढ़ाता है।
  विकासात्मक कार्यों में होने वाला भ्रष्टाचार आदि।
Tags