GS Paper-3 Environment (जीव विज्ञान और पर्यावरण) Part-1 (Q-6)

GS PAPER-3 (जीव विज्ञान और पर्यावरण) Q-6
 
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Q.6 - पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्रसे आप क्या समझते हैं? गाडगिल समिति द्वारा प्रस्तुत पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र के वर्गीकरण की योजना पर प्रकाश डालें।
 
उत्तर :
  पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रलय द्वारा संरक्षित क्षेत्रों, राष्ट्रीय पार्कों और वन्यजीव अभयारण्यों के चारों ओर के क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया जाता है। इन क्षेत्रों को घोषित करने का उद्देश्य एक प्रकार के आघात अवशोषक की भूमिका का निर्माण करना है, जिससे संरक्षित क्षेत्रों को नियमित करने और उनके मध्य गतिविधियों को प्रबंधित करने में आसानी हो। ये क्षेत्र उच्च संरक्षित क्षेत्रों से निम्न संरक्षित क्षेत्रों के मध्य संक्रमण क्षेत्र का निर्माण भी करते हैं।
  एक लम्बी परिचर्चा के पश्चात् सरकार ने 1600 कि.मी. लम्बे पश्चिमी घाट में लगभग 56,825 वर्ग कि.मी. क्षेत्र को पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया। ये अधिसूचित क्षेत्र 6 राज्यों में विस्तृत हैं। साथ ही यूनेस्को के विश्व विरासत स्थलों में सम्मिलित हैं तथा विश्व में जैव विविधता के आठ हॉट स्पॉटोंमें भी सम्मिलित हैं।
  इसी संदर्भ में सरकार ने माधव गॉडगिल की अध्यक्षता में एक पैनल का गठन किया, जिसका कार्य पश्चिमी घाट के पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्रों का वर्गीकरण करना था।
इस वर्गीकरण को निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता है-
  समिति ने 142 तालुकाओं को ESZ 1, 2 और 3 के रूप में वर्गीकृत किया।
  गोवा में अवस्थित ESZ 1 और 2 में खनन कार्यों के लिये पर्यावरणीय मंजूरी पर रोक लगा दी।
  ESZ 1 क्षेत्र में वृहद् बांधों के निर्माण पर रोक लगा दी गई।
  ESZ 1 और 2 में प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग जैसे-कोयला आधारित विद्युत संयंत्र आदि की स्थापना नहीं की जा सकती।
  समिति ने ESZ के विकास के लिये ग्राम सभाओं की सहमति को महत्त्वपूर्ण माना।
  पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी प्राधिकरण का निर्माण किया जाए और उसे जलवायु (संरक्षण) अधिनियम के तहत् अधिकार दिये जाएँ।
  यद्यपि गॉडगिल समिति ने पश्चिमी घाट के पर्यावरण को संरक्षित करने के लिये महत्त्वपूर्ण उपाय सुझाए हैं, तथापि यह वास्तविक परिस्थितियों का आकलन करने में असफल रही है। इसी कारण के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक नए पैनल का गठन किया गया जिससे पर्यावरण और विकास के मध्य संतुलन बनाया जा सके। कस्तूरीरंगन समिति ने पश्चिमी घाट के केवल 37% क्षेत्र को ESZ घोषित करने की सिफारिश की है।
 
निष्कर्ष:
यह कहा जा सकता है कि गॉडगिल समिति की सिफारिशों में व्यावहारिकता का अभाव था, यद्यपि यह पर्यावरण संरक्षण हेतु महत्त्वपूर्ण थी। इसीलिये कस्तूरीरंगन समिति के गठन द्वारा विकास और पर्यावरण के मध्य समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया गया।

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