GS Paper-1 History (इतिहास) Part-1 (Q.8)

GS PAPER-1 (इतिहास) Q-8
 
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Q.8 - देश का बँटवारा एक ऐसी सांप्रदायिक राजनीति का आखिरी बिंदु था, जो 19वीं शताब्दी के अंतिम दशकों में शुरू हुआ। परीक्षण कीजिये।
 
उत्तर :
   किसी विशेष प्रकार की संस्कृति और धर्म को दूसरों पर आरोपित करने की भावना या धर्म अथवा संस्कृति के आधार पर पक्षपातपूर्ण व्यवहार करने की क्रिया सांप्रदायिकता है। जब संस्कृति और धर्म का उपयोग राजनीतिक स्वार्थपूर्ति के लिये किया जाता है तो इसे सांप्रदायिक राजनीति कहा जाता है। भारतीय परिदृश्य में इसकी परिणति देश के विभाजन के रूप में सामने आई।
   1857 की क्रांति के पश्चात् ब्रिटिश सरकार ने भारत में बढ़ती हुई राष्ट्रवाद की भावना को महसूस किया तथा फूट डालो और शासन करोकी नीति को अपनाया। 1857 के बाद के कुछ वर्षों में मुस्लिमों को विद्रोह का ज़िम्मेदार बताकर अंग्रेजों ने उनके ऊपर अत्याचार किये, परंतु 19वीं शताब्दी के अंतिम दशकों में यह रुख मुस्लिमों की तरफ नर्म और हिन्दुओं की तरफ कठोर होता गया।
   19वीं सदी के उत्तरार्द्ध तक सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों की प्रकृति सुधारवादी से बदलकर पुनरुत्थानवादी हो चली थी। प्राचीन काल को हिन्दू अपना गौरव काल मानते थे तथा मध्ययुगीन काल को मुस्लिम।
   1875 में सैय्यद अहमद खाँ ने अलीगढ़ में आंग्ल-मुस्लिम कॉलेज की स्थापना की जो कि किसी भी दृष्टिकोण से हिन्दू-विरोधी नहीं था, परंतु विकास के पैमाने के लिये हिंदुओं से तुलना करने से हिन्दू भी अब होड़ में शामिल हो गए तथा बनारस में हिन्दू कॉलेज की स्थापना हुई।
   बंगाल विभाजन का कारण कर्जन द्वारा प्रशासकीय सुविधा बताया गया था परंतु यह कार्य सांप्रदायिक राजनीति से प्रेरित था।
   1906 . में मुस्लिम लीग की स्थापना हुई तथा इसने पृथक निर्वाचक मंडल की मांग की, मुस्लिम लीग की यह मांग 1909 . में मॉर्ले-मिंटो सुधारों द्वारा पूरी की गई।
   1916 - में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में मुस्लिम लीग भी शामिल हुई तथा कांग्रेस ने राष्ट्रीय आंदोलन में साथ काम करने के वादे के बदले मुस्लिमों के पृथक निर्वाचक को मंजूरी दे दी।
   गोलमेज सम्मेलनों के पश्चात् कम्यूनल अवॉर्डकी घोषणा ने सांप्रदायिक राजनीति का और विस्तार किया।
   यद्यपि 1937 से पहले भी सांप्रदायिक आधार पर अलग राष्ट्र के निर्माण की मांग की गई थी परंतु 1937 के चुनावों में कांग्रेस की जीत ने मुस्लिम लीग को रणनीति बदलने पर विवश किया। उन्होंने नया नारा कांग्रेस के हिन्दू बहुल शासन में इस्लाम खतरे में हैको अपनाया।
   अपने कट्टरवादी रुख के समर्थन में सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने के लिये कई मनगढ़ंत रिपोर्टें प्रकाशित की गईं, जैसे- पीरपुर रिपोर्ट (1938), शेरीफ रिपोर्ट (1939) तथा फजलूल हक रिपोर्ट (1939)
   1939 में प्रांतीय सरकारों से कांग्रेस के त्यागपत्र को मुक्ति दिवस के रूप में मनाया गया।
   1940 के लाहौर अधिवेशन में मुस्लिम लीग ने सर्वप्रथम पृथक राज्य की मांग की तथा 1942 के भारत छोड़ो आंदोलनका बहिष्कार किया।
   मुस्लिम लीग ने संविधान सभा में भाग नहीं लिया तथा अंतरिम सरकार के कामकाज में भी रुकावट डाली।
   मुस्लिम लीग पाकिस्तान की मांग पर अड़ी रही तथा मांग पूरा करने की स्थिति में सीधी कार्रवाई की धमकी दी। अंततः माउंटबेटन योजना के तहत भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ।
   हालाँकि बँटवारा स्वतंत्रता के समय हुआ परंतु इसकी पृष्ठभूमि काफी पहले से तैयार हो रही थी। सांप्रदायिक राजनीति विभाजन के साथ समाप्त नहीं हुई, यह आज़ाद भारत में भी निहित स्वार्थों की पूर्ति का साधन बनी हुई है।


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