Q.7 - जैव-विविधता से आप क्या समझते हैं?
जैव-विविधता के ह्रास के लिये उत्तरदायी कारकों को बताते हुए राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसके संरक्षण हेतु किये जा रहे प्रयासों की चर्चा करें।
उत्तर
:
भूमिका में:
जैव-विविधता का सामान्य परिचय -
जैव-विविधता से तात्पर्य पृथ्वी पर पाए
जाने वाले जीवों की विविधता से है। हालाँकि जैव-विविधता सिर्फ जीवों की
विविधता तक ही सीमित नहीं होती बल्कि इसमें वह पर्यावरण भी शामिल होता है,
जिसमें वे निवास करते हैं।
विषय-वस्तु में:
जैव-विविधता पर थोड़ा और विस्तार देते हुए इसके ह्रास के लिये उत्तरदायी कारक
-
→ साधारण शब्दों में कहा जाए तो जैव-विविधता
का अर्थ किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों एवं
वनस्पतियों की संख्या से है तथा इसका संबंध पौधों के प्रकारों,
प्राणियों
एवं सूक्ष्म जीवों से है। जैव-विविधता विभिन्न परिस्थितिकीय तंत्रों में
उपस्थित जीवों के बीच तुलनात्मक विविधता का आकलन है।
→ जैव-विविधता के अंतर्गत एक प्रजाति के
अंदर पाई जाने वाली विविधता,
विभिन्न जातियों के मध्य अंतर तथा
पारिस्थितिकीय विविधता आती है। जलवायु परिवर्तन,
बढ़ते प्रदूषण स्तर,
मानव
द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन से विभिन्न प्रजातियों के आवास
नष्ट हो रहे हैं जिसके कारण बहुत सारी प्रजातियाँ या तो विलुप्त हो गईं या
होने के कगार पर हैं। प्राकृतिक आपदाओं के कारण कभी-कभी जैव समुदाय के
संपूर्ण आवास एवं प्रजाति का विनाश हो जाता है। बढ़ते तापमान के कारण
समुद्री जैव-विविधता का विनाश हो जाता है। बढ़ते तापमान के कारण समुद्री
जैव-विविधता खतरे में है।
→ साथ ही हम पाते हैं कि विभिन्न माध्यमों से जब एक
क्षेत्र में दूसरे क्षेत्र विशेष से विदेशी प्रजातियाँ प्रवेश करती हैं तो
वे वहाँ की मूल जातियों को प्रभावित करती हैं,
जिससे स्थानीय प्रजातियों
में संकट उत्पन्न होने लगता है। साथ ही जानवरों का अवैध शिकार,
कृषि
क्षेत्रों का विस्तार,
तटीय क्षेत्र का नष्ट होना और जलवायु परिवर्तन भी
जैव-विविधता को प्रभावित करते हैं। भारत में जैव-विविधता ह्रास का एक
प्रमुख कारण जल एवं वायु प्रदूषण है।
जैव-विविधता संबंधी राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किये जा रहे प्रयासों के बारे में -
राष्ट्रीय स्तर
→ जैव-विविधता अधिनियम, 2002:
इस अधिनियम के अंतर्गत राष्ट्रीय जैव-विविधता प्राधिकरण,
चेन्नई का गठन
किया गया जो इस अधिनियम के क्रियान्वयन हेतु उत्तरदायी होगा। इस प्राधिकरण
का उद्देश्य भारत की समृद्ध जैव-विविधता के ज्ञान को संरक्षित रखकर वर्तमान
और भावी पीढ़ियों के कल्याण के लिये लाभ वितरण की प्रक्रिया को सुनिश्चित
करना है।
→ जैव-विविधता संरक्षण स्कीम: इसके दो मुख्य उपघटक हैं- जैव-विविधता और जैव-सुरक्षा। जैव-विविधता घटक के
तहत जैव-विविधता के बारे में कन्वेंशन संबंधी गतिविधियाँ शामिल हैं।
जैव-सुरक्षा घटक में आनुवंशिकी अभियांत्रिकी मूल्यांकन समिति,
कार्टाजेना
जैव-सुरक्षा प्रोटोकॉल आदि से संबंधित क्रियाकलाप शामिल हैं।
→ पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने 2000-2004
के दौरान राष्ट्रीय जैव-विविधता कार्य नीति और कार्ययोजना (NBSAP)
से
संबंधित एक परियोजना का क्रियान्वयन किया,
जिसके फलस्वरूप राष्ट्रीय
जैव-विविधता कार्ययोजना बनाई गई।
अंतर्राष्ट्रीय प्रयास
→ जैव-विविधता अभिसमय (CBD): 1992
में रियो-डि-जेनेरियो में आयोजित
पृथ्वी सम्मेलन के दौरान जैव-विविधता अभिसमय को अपनाया गया था। इसमें
जैव-विविधता से संबंधित सभी पहलुओं को शामिल किया गया है। भारत भी इसका एक
पक्षकार है।
इसके मुख्य पक्ष
→ कार्टाजेना जैव सुरक्षा प्रोटोकॉल - जैव तकनीकी की पहुँच एवं हस्तांतरण तथा जैव-तकनीकी की सुरक्षा को बढ़ाना।
→ नगोया प्रोटोकॉल - विकास के साथ-साथ लोगों का जैव-विविधता संरक्षण में योगदान बढ़ाना।
→ आईची लक्ष्य - जैव-विविधता की अद्यतन रणनीतिक योजना के तहत शामिल
मध्य/
दीर्घावधि योजना जिसे 2050
तक एवं लघुअवधि योजना जिसे 2020
तक प्राप्त
करने का लक्ष्य रखा गया है। लघुअवधि योजना के 20
महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों
को ही सम्मिलित रूप से आईची लक्ष्य कहते हैं।
निष्कर्ष:
अंत में सारगर्भित,
संतुलित एवं संक्षिप्त निष्कर्ष लिखें।