Q.12 - भारतीय संविधान का अनुच्छेद 244,
अनुसूचित व आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित है। इसकी पाँचवीं सूची का क्रियान्वयन न हो पाने से वामपंथी पक्ष के चरमपंथ पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण कीजिये।
उत्तर
:
भूमिका में:
संविधान के भाग-ग् और अनुच्छेद 244 के प्रावधान -
संविधान के भाग-ग् में देश के अनुसूचित और
जनजातीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा के
संबंध में विशिष्ट प्रावधान किये गए हैं। इस प्रयोजनार्थ अनुच्छेद 244
के
तहत संविधान का एक पृथक् अनुबंध अनुसूच-5
(पाँचवीं अनुसूची) के रूप में
बनाया गया है।
विषय-वस्तु में:
अनुसूची-5 के बारे में विस्तार से चर्चा -
→ संविधान की अनुसूची-5
असम,
मेघालय,
त्रिपुरा,
मिज़ोरम को छोड़कर 10
राज्यों के अनुसूचित क्षेत्र व अनुसूचित
जनजातियों के प्रशासन एवं नियंत्रण से संबंधित है। अनुसूचित जनजातियों के
कल्याण एवं उत्थान के लिये 5वीं अनुसूची में संबंधित राज्यों में जनजातीय
सलाहकार परिषद की स्थापना,
राज्यपाल द्वारा ऐसे क्षेत्रों के प्रशासन के
संबंध में राष्ट्रपति को सूचना भेजना,
राज्य विधानमंडल या संसद द्वारा
पारित अधिनियमों को ऐसे क्षेत्र में लागू नहीं करना या संशोधित रूप में
लागू करना या संशोधित रूप में लागू करना,
जैसे कई प्रावधान शामिल किये गए
हैं।
→ 5वीं अनुसूची में निहित उद्देश्यों की
पूर्ति के लिये संसद द्वारा ‘पेसा अधिनियम’
1996 पारित किया गया। ‘पेसा’
के
अंतर्गत 5वीं अनुसूची के क्षेत्र में ग्राम सभाओं को शासन की एक प्रमुख
इकाई के रूप में मान्यता प्रदान करने पर ज़ोर दिया गया है ताकि यह (ग्राम
सभा) लोगों को उनके संसाधनों पर नियंत्रण स्थापित करने के लिये सक्षम बना
सके।
→ 5वीं अनुसूची के क्षेत्र में ‘पेसा’
को
क्रियान्वित करने का उद्देश्य वहाँ के लोगों को शोषण से मुक्ति दिलाने हेतु
शासन की स्वायत्ता को बढ़ावा देना है। किंतु दुर्भाग्यवश,
पंचायती राज
मंत्रालय के दिशा-निर्देशों के बावजूद राज्यों द्वारा ‘पेसा’
का
क्रियान्वयन संतोषजनक तरीके से नहीं हुआ है।
→ इसी प्रकार अनुसूचित जनजाति एवं अन्य
परंपरागत वनवासी (वन अधिकारों को मान्यता) अधिनियम,
2006 जनजातीय समुदायों के लिये एक महत्त्वपूर्ण अधिनियम था,
जिसमें इन समुदायों के विभिन्न
अधिकारों को मान्यता प्रदान की गई थी।
→ अनुसूचित क्षेत्रों से संबंधित राज्यों के
राज्यपाल अपनी सरकारों के माध्यम से इस अधिनियम का तेज़ी से क्रियान्वयन
करवा सकते थे जिससे इन क्षेत्रों में भूमि से संबंधित विवादों को सुलझाया
जा सकता था। किंतु इस अधिनियम का तीव्र एवं प्रभावी क्रियान्वयन नहीं हुआ
जिससे जनजातीय समुदायों में असंतोष और आक्रोश उत्पन्न हुआ।
→ इसके अतिरिक्त 5वीं अनुसूची के प्रावधानों
के अंतर्गत राज्यपालों द्वारा अनुसूचित क्षेत्रों की स्थिति के बारे में
जो वार्षिक रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी जानी थी,
उसे भी कुछ राज्यों ने
गंभीरता से नहीं लिया और कुछ राज्यों द्वारा अभी भी यह रिपोर्ट सौंपी जानी
बाकी है।
अनुसूची-5 का सही क्रियान्वयन न होने से वामपंथी-चरमपंथी विचारधारा के लोगों द्वारा उठाए गए लाभ -
इन परिस्थितियों का लाभ वामपंथी-चरमपंथी
विचारधारा के लोग उठा रहे हैं। ऐसे लोग वर्तमान स्थिति का मुख्य कारण
मौजूदा सरकार एवं उसकी प्रशासनिक व्यवस्था को मानते हैं। विकल्प के रूप में
वह राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देने का प्रयत्न करते हैं।
इसके अलावा,
निम्नलिखित अन्य कारक भी वामपंथी-चरमपंथ के विकास में सहायक हैं-
→ बड़े उद्योगों के निर्माण के दौरान भारी संख्या में स्थानीय लोगों का विस्थापन एवं उनके पुनर्वास से संबंधित समस्या।
→ उनकी परंपरागत एवं सांस्कृतिक पहचान संबंधी संकट।
→ चरमपंथियों द्वारा उनका हितैषी बनने का दिखावा एवं राज्य के खिलाफ दुष्प्रचार।
→ जागरूकता के अभाव में चरमपंथियों को स्थानीय लोगों का समर्थन।
→ दुर्गम भौगोलिक स्थिति एवं सरकारी योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन न होना इत्यादि।
संबंधित समस्याओं के समाधान पर चर्चा -
→ पेसा अधिनियम के प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू करना।
→ 5वीं अनुसूची के तहत क्षेत्रों के लिये
कर्मचारियों के एक नए संवर्ग का निर्माण किया जा सकता है। उनके लिये
अतिरिक्त वेतन तथा अन्य प्रोत्साहन की व्यवस्था की जा सकती है ताकि इन
क्षेत्रों के प्रशासन तंत्र को सुदृढ़ किया जा सके।
→ अनुसूचित क्षेत्रों से संबंधित राज्यों
के राज्यपाल से प्राप्त होने वाली वार्षिक रिपोर्टों को महत्त्व दिया जाना
चाहिये। ऐसी रिपोर्टों को जल्द प्रकाशित कर जनता के समक्ष लाया जाना
चाहिये।
→ उपर्युक्त उपायों से जनजातीय समुदाय के असंतोष को कम करने में मदद मिलेगी।
निष्कर्ष:
सिविक कार्यवाही के ज़रिये सुरक्षा बलों
तथा वामपंथ-चरमपंथी विचार से प्रभावित लोगों के बीच बेहतर संवाद कायम करने
से उनकी भावनाओं को जीता जा सकता है। साथ ही इन क्षेत्रों से अर्जित आय के
अधिकतम भाग को भी वहीं पर खर्च करना उपयुक्त होगा। मनरेगा,
सर्वशिक्षा
अभियान तथा पुनर्वास नीति का बेहतर कार्यान्वयन सुनिश्चित करना ज़रूरी है और
मीडिया योजना के माध्यम से लोगों में जागरूकता फैलाना भी इस दिशा में
बेहतर कार्य साबित हो सकता है।