Q.20 - ब्रिटिश शासन की भू-राजस्व नीतियों का सामाजिक तथा आर्थिक दुष्परिणाम यह रहा कि उसनें सदियों से चले आ रहे भारतीय सामाजिक ढाँचे को बदलकर रख दिया। विवेचना करें।
उत्तर :
→ बंगाल विजय के उपरांत अंग्रेजों द्वारा अत्यधिक आर्थिक लाभ कमाने तथा भारत में अपनी स्थिति को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से कई नीतियों का अनुसरण किया गया। इन नीतियों में सबसे महत्त्वपूर्ण थी भू-राजस्व व्यवस्था। जिसके तहत मुख्य रूप से तीन प्रकार की भू-राजस्व व्यवस्थाएँ लागू की गई, जिनमें स्थायी बंदोबस्त, महालबाड़ी और रैयतवाड़ी प्रणाली शामिल थी।
→ स्थायी बंदोबस्त के तहत ज़मींदारों को अपने क्षेत्र का पूर्ण स्वामित्व प्रदान किया गया, साथ ही भू-राजस्व की राशि के निर्धारण का अधिकार ज़मींदारों को दे दिया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि जहाँ अंग्रेजों को आर्थिक लाभ प्राप्त हुए वहीं ज़मींदारों की स्थिति भी मज़बूत हुई लेकिन किसानों व काश्तकारों के शोषण में वृद्धि होने लगी। रैयतबाड़ी व्यवस्था के तहत रैयतों को भूमि का मालिकाना हक तो प्रदान कर दिया गया किंतु भू-राजस्व की अत्यधिक दर होने के कारण किसानों की स्थिति में कोई आवश्यक सुधार नहीं आया। उपरोक्त दोनों व्यवस्था के आशानुरूप प्रगति न हो पाने के कारण महालबाड़ी व्यवस्था लाई गई। इस व्यवस्था के तहत भू-राजस्व की निर्धारण महाल या संपूर्ण ग्राम के उत्पादन के आधार पर किया जाता था। और महाल के समस्त कृषक भू-स्वामियों के भू-राजस्व का निर्धारण संयुक्त रूप से किया जाता था, परंतु भू-राजस्व की अदायगी कृषक भू-स्वामियों द्वारा व्यक्तिगत रूप से की जाती थी। इस व्यवस्था में भी कई खामियाँ विद्यमान थीं।
→ कुल मिलाकर यदि देखा जाए तो अंग्रेजों की भू-राजस्व नीति ने भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव छोड़ा। इसके साथ ही, कुटीर उद्योग-धंधे तबाह होने के परिणामस्वरूप जमीन पर दवाब बढ़ने लगा, भूमि जोत का औसत कम होने लगा, किसान ऋण के चंगुल में फँसने लगा। इस व्यवस्था ने उस प्राचीन समाजिक ढ़ाँचे को बर्बाद कर दिया जिसमें किसान सदियों से निवास कर रहे थे। इसने उन सभी सामाजिक बंधनों को तहस-नहस कर दिया जिसने ग्रामीण समाज के विभिन्न वर्गों को आपस में जोड़े रखा था।
इसे हम निम्नलिखित रूपों में देख सकते हैं-
→ सदियों से चली आ रही संयुक्त परिवार प्रणाली को तोड़ दिया।
→ सामूहिक सहयोग का स्थान प्रतिस्पर्द्धा व प्रतियोगिता ने ले लिया।
→ कृषि उत्पादन को बाहरी बाजार की आवश्यकताओं के अनुकूल बनाया जाने लगा।
→ गांवों को विदेशी आयात के लिये खोल दिया गया जिससे ग्रामीण हस्तशिल्प उद्योगों को आत्यधिक क्षति होने लगी। और वे मजदूर बनने पर विवश हो गये।
→ इस प्रकार अंग्रेजों की भू-राजस्व नीति ने भारतीय परंपरागत सामाजिक ढ़ांचे को पूरी तरह से बदलकर रख दिया।