GS Paper-1 Geography (भूगोल) Part-1 (Q-15)

GS PAPER-1 (भूगोल) Q-15
 
GS Paper-1 Geography (भूगोल)

Q.15 - अपक्षय को परिभाषित करते हुए उसके प्रकारों को विस्तार पूर्वक समझाएँ।

उत्तर :

भूमिका:

अपक्षय एक स्व-स्थाने या यथा-स्थान पर घटित होने वाली प्रक्रिया है जिसमें वायुमंडलीय तत्त्वों द्वारा धरातल के पदार्थों पर की गई क्रिया शामिल होती है।

विषय-वस्तु

अपक्षय प्रक्रिया और उसके प्रकार-

  अपक्षय वह प्रक्रिया है जिसमें चट्टानें बाह्य कारकों, जैसे- पवन, वर्षा, तापमान परिवर्तन, सूक्ष्म जीवाणु, पौधे और जीव-जंतु द्वारा विघटित एवं अपघटित की जाती हैं। अपक्षय हमारी पारिस्थितिकी का मुख्य आधार है। अपक्षय प्रक्रियाएँ मृदा निर्माण, अपरदन एवं वृहद् संचलन के लिये आवश्यक होती हैं।

  चट्टानों का अपक्षय एवं निक्षेपण देश की अर्थव्यवस्था के लिये भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह मूल्यवान खनिजों, जैसे- लोहा, मैंगनीज, एल्युमीनियम और ताँबा जैसे अयस्कों के संकेंद्रण में सहायक होता है।

मुख्य रूप से अपक्षय तीन प्रकार का होता है-

    1. भौतिक                 2. रासायनिक                3. जैविक

1. भौतिक अपक्षय: ऐसी प्रक्रियाएँ कुछ अनुप्रयुक्त बलों पर निर्भर करती हैं यथा- गुरुत्वाकर्षण बल, तापमान में परिवर्तन, विस्तारण बल, शुष्कन एवं आर्द्रन चक्रों द्वारा नियंत्रित जल का दबाव।

  भार विहीनीकरण एवं विस्तारण: लगातार अपरदन के कारण ऊपरी शैलों के भार से उर्ध्वाधर दबाव मुक्त होता है जिससे चट्टानों का विघटन होता है। इस प्रक्रिया द्वारा बने बड़े, चिकने, गोलाकार गुंबद को अपशल्कन गुंबद कहते हैं।

  तापक्रम में परिवर्तन एवं विस्तारण: शुष्क जलवायु एवं अधिक ऊँचे क्षेत्रों में जहाँ दैनिक तापांतर बहुत अधिक होता है, ऐसी प्रक्रियाएँ प्रभावशाली तरीके से होती हैं। इस प्रक्रिया में चट्टानों के अंदर विद्यमान खनिज तापक्रम के बढ़ने पर फैलते है एवं तापमान गिरने पर संकुचित होते हैं। यह आंतरिक संचलन चट्टानों को कमज़ोर बना देता है एवं चट्टानों में चिकनी, गोलाकार सतहों का निर्माण करता है। उदाहरणत:- ग्रेनाइट शैलों के टॉर।

  हिमीकरण, पिघलन एवं तुषार वेजिंग: चट्टानों की दरारों एवं छिद्रों में बार-बार हिम के जमने और पिघलने से तुषार का अपक्षय होता है। यह प्रक्रिया मध्य अक्षांशों में अधिक ऊँचाइयों पर घटित होती है।

  लवण अपक्षय: शैलों में तापीय क्रिया, जलयोजन एवं क्रिस्टलीकरण के कारण लवणों का फैलाव होता है जो कणिक विघटन या शल्कन का कारण बनता है।

2. रासायनिक अपक्षय: इसके अंतर्गत विलयन, कार्बोनेशन, जलयोजन, ऑक्सीकरण तथा न्यूनीकरण चट्टानों के अपघटन का कार्य करते हैं।

  घोल/विलयन: जल या अम्ल के संपर्क में आने पर अनेक ठोस पदार्थ विघटित होकर जल में मिश्रित हो जाते हैं। उदाहरण के तौर पर चूना पत्थर में विद्यमान कैल्शियम कार्बोनेट, कैल्शियम मैग्नेशियम बाईकार्बोनेट जैसे खनिज, कार्बोनिक एसिड युक्त जल में घुलनशील होते हैं।

  कार्बोनेशन: कार्बोनेट एवं बाईकार्बोनेट की खनिजों से प्रतिक्रया का परिणाम कार्बोनेशन कहलाता है। यह फेल्सपार तथा कार्बोनेट खनिज को पृथक् करने में सहायक होता है।

  जलयोजन: जल का रासायनिक योग जलयोजन कहलाता है। खनिज जल से संयुक्त होकर फैल जाते हैं जिससे चट्टानों में वृद्धि हो जाती है।

  ऑक्सीकरण एवं न्यूनीकरण: इस प्रक्रिया में खनिज एवं ऑक्सीजन का संयोग होता है जो ऑक्साइड या हाइड्रोऑक्साइड का निर्माण करता है। इस प्रक्रिया में सबसे अधिक लौह, मैगनीज़ एवं गंधक शामिल होते हैं। न्यूनीकरण की प्रक्रिया जो ऑक्सीजन के अभाव में होती है, के कारण भी चट्टानों का अपक्षय होता है।

3. जैविक अपक्षय: जीवों की वृद्धि या संचलन के कारण होने वाले अपक्षय एवं भौतिक परिवर्तन से खनिजों का स्थानांतरण होता है। मानवीय क्रियाएँ भी जैविक अपक्षय में सहायक होती हैं। शैवाल पोषक तत्त्वों, लौह एवं मैगनीज़ ऑक्साइड के संकेंद्रण में सहायक होता है। पौधों की जड़ें भी पदार्थों पर दबाव डालती हैं

निष्कर्ष

अंत में संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें-


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