GS Paper-3 Internal Security (आंतरिक सुरक्षा) Part-1 (Q-5)

GS PAPER-3 (आंतरिक सुरक्षा) Q-5
 
Internal Security (आंतरिक सुरक्षा)

Q.5- एक समय विश्व के साथ अधिक सक्रिय रूप से संलग्न होने के लिये एक मंच के रूप में पहचाना जाने वाला सोशल मीडिया पिछले कुछ समय से समाज के लिये आंतरिक सुरक्षा का खतरा बन रहा है। आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)
 
उत्तर :
  सोशल मीडिया ने सूचना एवं संचार क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन का सूत्रपात्र किया है। इसने ग्लोबल गाँव एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे लोकतांत्रिक मूल्य को नया आयाम दिया है, तो वहीं अपनी सीमाओं के चलते आंतरिक सुरक्षा के समक्ष कई चुनौतियाँ भी उत्पन्न की हैं।
  सोशल मीडिया लोगों को अपनी व्यक्तिगत या संस्थागत प्रोफाइल बनाने, इससे जुड़ी जानकारियों को फैलाने और नए-नए लोगों से जुड़ने का अवसर प्रदान करता है। फेसबुक एवं ट्विटर जैसे सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्मो के माध्यम से व्यक्ति दुनिया के किसी कोने में मौजूद व्यक्तियों या संस्थाओं से संवाद स्थापित कर सकता है। इसने भौगोलिक सीमाओं एवं दूरीगत बाधाओं को गौण कर दिया। इसी सोशल मीडिया को विश्व के साथ अधिक सक्रिय रूप से संल्गन एक मंच के रूप में जाना जाता है।

         लेकिन पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया आंतरिक सुरक्षा के समक्ष चुनौती भी उत्पन्न कर रहा है, जैसे:
  अफवाह फैलाकर सामाजिक तनाव फैलाना, दिग्भ्रमित करने वाली खबरें दिखाना आदि आज सोशल मीडिया की पहचान बन गई हैं। 2012 में पूर्वोत्तर के लोगों पर हमले की अफवाह फैलाई गई, जो इसका उदाहरण है।
  ऑडियो या वीडियो अपलोड करके सांप्रदायिक दंगे करवाना इस माध्यम ने ज़्यादा आसान बना दिया है। उदाहरण के लिये 2013 के मुज़फ्फरनगर दंगे।
  हनी ट्रैपके माध्यम से देश की गोपनीय जानकारियों के लीक होने का खतरा। हाल ही में भारतीय सेना के एक जवान को इस मामले में गिरफ्तार किया गया है।
  सोशल मीडिया के माध्यम से आंतकवादियों एवं अलगाववादियों को अपनी विचारधारा का प्रसार करने का मंच उपलब्ध होता है। 2014 में बंगलूरू से गिरफ्तार इंजीनियर का आईएसआई (ISI) से संबंध होना इसका उदाहरण है।
  सोशल मीडिया पर टोलके माध्यम से या अवसाद के कारण व्यक्ति में आत्महत्या की प्रवृत्ति भी बढ़ जाती है।
  लेकिन दूसरे पक्ष को देखें तो सोशल मीडिया ने अरब स्प्रिंगएवं इंडिया अगेंस्ट करप्सनजैसे आंदोलनों के माध्यम से लोकतंत्र के पक्ष में सशक्त आवाज़ उठाई तथा निर्भया कांड से लेकर पेशावर हमले तक के विरोध में सामाजिक आंदोलन चलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  वस्तुत: आज के गतिशील दौर में सोशल मीडिया की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है। इसके विनिमयन के लिये सभी हितधारकों के साथ चर्चा कर प्रभावी राष्ट्रीय सोशल मीडिया नीति एवं कानून बनाने की आवश्यकता है ताकि इससे उत्पन्न चुनौतियों को कम किया जा सके। इस संदर्भ में जर्मनी से सीख ली जा सकती है।

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