GS Paper-1 Indian Society (भारतीय समाज) Part-1 (Q-19)

GS PAPER-1 (भारतीय समाज) Q-19
 
GS Paper-1 Indian Society (भारतीय समाज)

Q.19 - कामकाजी महिलाओं की मुख्य समस्याओं पर संक्षिप्त टिप्पणी करें।

उत्तर :

  कामकाजी महिलाओं को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ता है- घरेलू एवं बाह्य। अर्थात् उन्हें अपने घर-परिवार, रिश्ते-नाते के साथ-साथ ऑफिस सबको ठीक से चलाना पड़ता है और इन सबमें प्रमुख है दोनों के बीच संतुलन, क्योंकि किसी एक पक्ष को गलती से भी इग्नोर करने पर जीवन की गाड़ी डगमगाने लगती है।

  आजादी के बाद नारी शिक्षा की स्थिति में सुधार के कारण उच्च मध्यवर्गीय के साथ-साथ आम शहरी मध्यवर्गीय परिवारों की नारियाँ भी शिक्षित हुई और उन्होंने अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश की। कई महिलाओं ने उसमें सफलता भी प्राप्त की, लेकिन पितृवादी सोच हमेशा उनके आड़े आती है, जो उनकी परेशानियों का कारण बनती है। घर के बाहर की समस्या ऑफिस में अभी भी पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या कम। फलतः वे पूरी तरह से सहज नहीं हो पाती हैं।

  ऑफिस में सेक्सुअल हरासमेंटका डर।

  अपने सहकर्मी से पर्याप्त सम्मान नहीं मिल पाना।

  महत्त्वपूर्ण भूमिका दिये जाना।

   प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष तौर पर मजाक बनाना।

   महिलाएँ अधिकांशतः असंगठित क्षेत्र में ही हैं, अतः जीवन, व्यवसाय इत्यादि की असुरक्षा तथा निम्न वेतन।

  जैविक कार्यों (मातृत्व इत्यादि) के लिये भी पर्याप्त छुट्टी मिल पाना।

  चूँकि, पारंपरिक रूप से घर का काम महिलाओं के हिस्से आता था। लेकिन तब की स्थिति अलग थी, क्योंकि तब महिलाएँ घर में ही काम करती थीं। लेकिन अब जबकि वे बाहर निकलकर काम करने लगी हैं, तब भी उनसे घर के सारे काम करने की उम्मीद की जाती है। एक कामकाजी महिला को कामकाजी पुरुषों से दुगना काम करना पड़ता है। अपने बच्चे, पति, सास-ससुर इत्यादि सभी का भी ख्याल पूर्ववत् रखना पड़ता है।

  अब चूँकि संयुक्त परिवार टूट गए हैं, इसलिये उनका हाथ बँटाने वाला कोई नहीं है। इसलिये उनकी समस्याएँ और भी बढ़ जाती हैं।

समाधान

  घरेलू कार्यों में पुरुषों को महिलाओं के साथ बराबरी से काम में हाथ बँटाना चाहिये।

  घर से बाहर, जैसे- ऑफिस, परिवहन के साधन इत्यादि की व्यवस्था इतनी सुरक्षित एवं वुमन फ्रैंडलीहो कि वे वहाँ सुरक्षित महसूस कर सकें।

  इनकी जैविक आवश्यकता को देखते हुए छुट्टियों की पर्याप्त व्यवस्था हो।

  संगठित क्षेत्रें में तो मातृत्व लाभअब अनिवार्य हो गया है परंतु असंगठित क्षेत्र में भी ऐसी कुछ व्यवस्था हो या फिर सरकार की ओर से कुछ वित्तीय सुरक्षा दी जाए।

   डॉमेस्टिक हेल्पको विनयमित तथा सुरक्षित बनाया जाए, ताकि महिलाओं की सहायता हो सके। तभी हम सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की अधिकाधिक भागीदारी बढ़ा सकेंगे और अरुंधति राय, चंदा कोचर, किरण मजूमदार की तरह अनेक महिला उद्यमी, लोक सेवक बन सकेंगी।


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