Q.11 - अफ्रीका महाद्वीप में राष्ट्रवाद के उदय के प्रमुख कारणों एवं इसके समक्ष उपस्थित चुनौतियों का वर्णन करें।
उत्तर :
→ 19वीं सदी में अफ्रीका, यूरोपीय साम्राज्यवाद का सर्वप्रमुख क्षेत्र रहा है। अफ्रीका में साम्राज्यवादी विस्तार की उल्लेखनीय विशेषता यह थी कि यूरोपीय शक्तियों ने यहाँ बड़ी चालाकी से क्षेत्रों को आपस में बाँट लिया और यहाँ पर बँटवारा क्रमिक रूप से न होकर बड़ी तीव्रता से हुआ। संपूर्ण बँटवारा बिना किसी युद्ध के संपन्न हो गया।
→ 1936 में अबीसीमिया पर इटली ने विजय प्राप्त की और अफ्रीका महाद्वीप के स्वाधीनता का अंत किया तत्पश्चात् अफ्रीका में स्वतंत्रता आंदोलन प्रारंभ हुआ और कहा गया कि “अफ्रीका, अफ्रीकावासियों का है।” और इस प्रकार अफ्रीका में राष्ट्रवादी विचारधारा का प्रसार हुआ तथा दूसरी तरफ द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् यूरोपीय शक्तियाँ कमजोर हुईं और विभिन्न क्षेत्र तेजी से स्वतंत्र होने लगे।
अफ्रीका में राष्ट्रवाद के उदय के कारण:
→ यूरोप की श्वेत जातियाँ अफ्रीकी अश्वेतों को निम्न कोटि का मानती थीं, जो कि प्रतिक्रिया का प्रमुख कारण बनीं।
→ पाश्चात्य संपर्क एवं साहित्य के प्रसार ने भी अफ्रीकी बौद्धिक वर्ग को जागृत किया। फलतः राष्ट्रवादी चेतना का विकास हुआ। अफ्रीकियों ने यह महसूस किया कि यूरोपीय उपनिवेशवाद अफ्रीका में भूख एवं विभाजन का कारण है, अतः विदेशी प्रभुत्व से मुक्ति के लिये संकुचित कबीलावाद से ऊपर उठकर समस्त अफ्रीका को एक इकाई बनाया जाए। इस अवधारणा ने राष्ट्रीय चेतना को प्रेरित किया।
→ द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् यूरोपीय शक्तियों का कमज़ोर होना तथा विश्व व्यवस्था को बनाए रखने के लिये जिन अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का निर्माण हुआ, उन्होंने ने भी काफी हद तक अफ्रीका के स्वतंत्रता संग्राम को प्रोत्साहित किया।
अफ्रीका में राष्ट्रवाद के प्रसार के मार्ग में बाधक तत्त्व:
→ अफ्रीका में राष्ट्रवाद परस्पर विरोधी गुटों एवं मान्यताओं के कारण बाधित रहा। अफ्रीका में मौजूद कबीलावाद राष्ट्रीय एकता का बाधक तत्त्व रहा।
→ अफ्रीका का आर्थिक पिछड़ापन और विदेशी कंपनियों द्वारा आर्थिक शोषण भी बाधक तत्त्व के रूप में रहा।
→ अफ्रीका में सैन्य सरकारों की मौजूदगी राष्ट्रवाद में बाधक रही।