GS Paper-1 Geography (भूगोल) Part-1 (Q-4)

GS PAPER-1 (भूगोल) Q-4
 
GS Paper-1 Geography (भूगोल)

Q.4- एनाबेटिक एवं कैटाबेटिक पवनों से आप क्या समझते हैं? स्थानीय मौसम पर इनके प्रभाव की सोदाहरण व्याख्या करें। (150 शब्द)
उत्तर :
पवनें अर्थात् वायु की वे धाराएँ जो निरंतर एक ही दिशा में क्षैतिज रूप से वर्ष भर चलती रहती हैं। पवनें उच्च दाब से न्यून दाब वाले क्षेत्रों की ओर चलती हैं। धरातलीय विषमताओं के कारण इनमें घर्षण उत्पन्न होता है जिससे पवनों की दिशाएँ प्रभावित होती हैं। पृथ्वी का घूर्णन भी पवनों के वेग को प्रभावित करता है। वायुदाब की प्रवणता पवनों की दिशा और गति दोनों को प्रभावित करती है। पृथ्वी पर चलने वाली पवनों को सनातन पवनऔर स्थानीय पवनदो वर्गों में वर्गीकृत किया गया है।
एनाबेटिकऔर कैटाबेटिकपवनें स्थानीय पवन कहलाती हैं। इन्हें क्रमश: घाटी समीरऔर पर्वत समीरकहते हैं। दिन के दौरान पर्वतीय प्रदेशों में ढाल गर्म हो जाते हैं और वायु ढाल के साथ-साथ ऊपर उठती है तथा इस स्थान को भरने के लिये वायु घाटी से बहती है। इन पवनों को घाटी समीर या एनाबेटिक पवन कहते हैं। रात्रि के समय पर्वतीय ढाल ठण्डे हो जाते हैं और सघन वायु घाटी में नीचे उतरती है जिसे पर्वतीय पवन या कैटाबेटिक पवन कहते हैं।
इन पवनों के स्थानीय मौसम पर प्रभाव को निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता है-
  स्थानीय स्तर पर यह तापमान को नियंत्रित रखने में सहायक है।
  पहाड़ी ढालों पर बाग़ान कृषि में सहायक, जैसे- शिमला आदि स्थानों पर सेबों की कृषि में इन पवनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
  पर्वत समीर उच्च पहाड़ी स्थलों पर तापमान को तीव्र रूप से ठण्डा नहीं होने देती। वहीं, घाटी समीर निम्न पर्वतीय क्षेत्रों पर तापमान एवं वायुदाब को नियंत्रित रखती है।
  यह पर्वतीय क्षेत्रों में चरागाहों के विकास में सहायक सिद्ध होती है।
 
निष्कर्ष: यह कहा जा सकता है कि एनाबेटिक और कैटाबेटिक पवनें पर्वतीय क्षेत्रों, ढालों एवं उँचाई पर महत्त्वूपर्ण जलवायु परिवर्तक तथा नियंत्रक की भूमिका का निर्वहन करती हैं।

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