Q.14 - पिछले
कुछ वर्षों में,
वामपंथी अतिवाद (एलडब्ल्यूई) ने स्वयं को भारत के लिये
सबसे प्रमुख आंतरिक सुरक्षा चुनौती के रूप में प्रस्तुत किया है। सरकारों
द्वारा किये गए विभिन्न उपायों के बावजूद एलडब्ल्यूई इतने वर्षों तक किस
प्रकार कायम रहा है?
वे उपाय सुझाइये जो एलडब्ल्यूई प्रभावित क्षेत्रों में
स्थायी शांति ला सकते हैं। (250
शब्द)
उत्तर
:
वामपंथी उग्रवाद की शुरुआत 1967
में
पश्चिम बंगाल के दार्जिंलिंग ज़िले से हुई। वामपंथी या साम्यवादी विचारधारा
से प्रेरित होने के कारण इसे वामपंथी उग्रवाद कहा जाता है। जनक्रान्ति की
विचारधारा पर खड़ा किया गया यह आंदोलन आज सत्तालोलुप और आर्थिक शोषण करने
वाले उग्रवादियों के नियत्रंण में आ गया है।
वामपंथी उग्रवाद ने निम्नलिखित रूपों में भारत के लिये सबसे अधिक आंतरिक सुरक्षा को चुनौती के रूप में प्रस्तुत किया है:
1. पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों पर हमले
करना तथा उनके हथियारों को छीनना। पिछले साल छत्तीसगढ़ के सुकमा में हुए
नक्सली हमले,
जिसमें 26
जवान मारे गए इसका एक उदाहरण है।
2. बाहरी ताकतों के साथ रणनीतिक संबंध बनाकर इससे इनको धन,
तकनीकी एवं हथियार प्राप्त होते रहते हैं।
3. बुद्धिजीवियों के बीच अपना समर्थन बढ़ाना,
जिससे इनकी हिंसा को जायज ठहराने का प्रयास किया जाता है।
4. प्रभावित क्षेत्रों में आधारभूत सरकारी
अवसंरचनाओं को नुकसान पहुँचाना तथा गरीबी,
बेरोज़गारी का लाभ उठाकर लोगों
को आर्थिक प्रलोभन के माध्यम से जोड़कर अपने प्रभाव का विस्तार करना।
वामपंथी उग्रवाद से निपटने के लिये केंद्र सरकार एवं संबंधित राज्य सरकारों द्वारा कई स्तरों पर प्रयास किये गए हैं,
जैसे:
→ छत्तीसगढ़,
झारखंड,
ओडिशा एवं पश्चिम बंगाल को मिलाकर एकीकृत समाज की स्थापना।
→ स्पेशल इंफ्रास्ट्रक्चर स्कीम द्वारा पुलिस एवं अर्द्धसैनिक बलों के आधुनिकीकरण पर बल।
→ नक्सली क्षेत्रों में विभिन्न ऑपरेशन चलाए गए,
जैसे- ऑपरेशन ग्रीन हंट।
→ आत्मसमर्पण एवं पुर्नवास की नीति।
→ कौशल विकास संबंधी योजना,
जैसे- रोशनी।
अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वनवासी अधिनियम,
2006 के माध्यम से वन अधिकारों की मान्यता आदि।
यद्यपि उपर्युक्त प्रयासों से काफी हद तक
वामपंथी उग्रवाद के प्रभावों को समाप्त करने में सफलता मिली है तथा लोगों
द्वारा बढ़-चढ़कर लोकतांत्रिक चुनाव प्रक्रिया में भागीदारी देखने को मिलती
है। लेकिन यह अपने अवशेष के रूप में अभी भी मौजूद है,
इसका कारण है:
→ राष्ट्रविरोधी ताकतों को सीमा पार से सहयोग मिलना।
→ कुछ बुद्धिजीवियों द्वारा इन्हें समर्थन प्राप्त होना।
→ राजनैतिक दूरदर्शिता का अभाव तथा इन्हें मिलनें वाला राजनीतिक संरक्षण।
→ प्रभावित क्षेत्रों में किये जाने वाले विकासात्मक कार्यों में भ्रष्टाचार आदि।
वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों में स्थायी शांति लाने के लिये निम्न उपायों को अपनाया जा सकता है:
→ मूलभूत सुविधाओं,
जैसे- शिक्षा,
सड़क,
स्वास्थ्य एवं पेयजल आदि को उपलब्ध कराने पर ज़ोर।
→ इन क्षेत्रों में 5वीं अनुसूची,
पेसा व वनवासी अधिनियमों के प्रावधानों को पूर्ण रूप से लागू करना।
→ भू-सुधार से संबंधित नीतियों के सफल क्रियान्वयन को सुनिश्चित करना।
→ सीमापार से मिलने वाले सहयोग पर अकुंश लगाना आदि।