GS Paper-1 Indian Society (भारतीय समाज) Part-1 (Q-6)

GS PAPER-1 (भारतीय समाज) Q-6
 
GS Paper-1 Indian Society (भारतीय समाज)

Q.6 - क्या वैश्विक स्तर पर उदारवाद का अंत हो रहा है? तर्क दीजिये।
 
उत्तर :
  उदारवाद एक राजनीतिक और नैतिक दर्शन है जो स्वतंत्रता, शासित की सहमति और कानून के समक्ष समानता पर आधारित है। उदारवाद आमतौर पर व्यक्तिगत अधिकारों (नागरिक अधिकारों और मानवाधिकारों सहित), पूंजीवाद (मुक्त बाज़ार), लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, लिंग समानता, नस्लीय समानता और अंतर्राष्ट्रीयता का समर्थन करता है।
  प्रबोधन काल के बाद से पश्चिम में दार्शनिकों और अर्थशास्त्रियों के बीच उदारवाद काफी लोकप्रिय हुआ। उदारवाद ने वंशानुगत विशेषाधिकार, राज्य में धार्मिक तंत्र तथा राजाओं के दिव्य अधिकारों जैसे पारंपरिक रूढ़िवादी मानदंडों को प्रतिनिधि लोकतंत्र और कानून के शासन द्वारा परिवर्तित करने की मांग की थी। इस समय तक उदारवाद की सफलता निर्विवाद रही थी और भविष्य में भी उदारवाद का कोई ठोस विकल्प नहीं दिखाई दे रहा था। किंतु हाल ही में G-20 की बैठक से ठीक पहले रूसी राष्ट्रपति का यह कहना कि वैश्विक स्तर पर उदारवाद का अंत हो रहा है, उदारवाद के अस्तित्व पर सवाल उठाता है इसमें अंतर्निहित कारक निम्नानुसार हैं-
 
  द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद उदारवाद पश्चिम में प्रमुख सामाजिक-राजनीतिक विचारधारा रहा है लेकिन हाल ही में पश्चिम में भी उदारवाद की स्थिति में गिरावट देखी जा रही है।
  ब्रिटेन में जनता द्वारा ब्रेक्ज़िट का समर्थन और अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों का समर्थन यह प्रदर्शित करता है कि पश्चिम के समाज में भी प्रचलित मूल उदारवाद के स्वरूप में अब परिवर्तन रहा है।
  अमेरिका की नई प्रवासी नीतियों के माध्यम से प्रवासियों को अमेरिका में प्रवेश करने से रोका जा रहा है साथ ही जर्मनी द्वारा शरणार्थियों को स्वीकार करने की नीतियों से गलत परिणाम निकलने की संभावना व्यक्त की जा रही है।
  समलैंगिक विवाह को केवल कुछ देशों द्वारा ही मान्यता दी जा रही है, दूसरी ओर समलैंगिकता हेतु कई देशों में मौत की सज़ा का प्रावधान है। LGBTQ (Lesbian, Gay, Bisexual, Transgender, QUEER) के अधिकारों में बहुत धीमी प्रगति देखी जा रही है, जबकि अब यह सिद्ध हो चुका है कि इस प्रकार के लोगों की शारीरिक संरचना प्रकृति द्वारा निर्धारित होती है।
  कई देशों द्वारा पर्यावरणीय हित के विरुद्ध नीतियाँ बनाई जा रही हैं इसमें स्वयं के संकीर्ण हितों को वैश्विक जलवायु परिवर्तन से ज़्यादा प्राथमिकता दी जा रही है। हाल ही में ब्राज़ील के वनों में लगी आग हेतु सरकार की नीतियों को ज़िम्मेदार बताया जा रहा है।
  आज सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण हेतु आवश्यक है कि विश्व वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा अपनाए। वैश्विक स्तर पर संरक्षणवादी नीतियों को त्याग कर उदारीकरण को बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों का समावेशी विकास किया जा सके।


Tags