GS Paper-1 Indian Culture (संस्कृति) Part-1 (Q.4)

GS PAPER-1 (संस्कृतिQ-4
 
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Q.4 - पाश्चात्य जगत के लिये स्वामी विवेकानंद भारत के पहले सांस्कृतिक राजदूत थे, जिन्होंने भारत के सांस्कृतिक एकीकरण में अतुल्य योगदान दिया। विवेचना कीजिये।
 
उत्तर :
प्रश्न विच्छेद
स्वामी विवेकानंद के सांस्कृतिक एकीकरण में योगदान की चर्चा करनी है।

हल करने का दृष्टिकोण
  स्वामी विवेकानंद का संक्षिप्त परिचय देते हुए स्पष्ट करें कि वह किस प्रकार पाश्चात्य जगत् के लिये प्रथम सांस्कृतिक दूत थे?
  स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 में कोलकाता में हुआ था। स्वामी जी का मूल नाम नरेंद्र नाथ दत्त था, जिसे कालांतर में श्री रामकृष्ण परमहंस ने बदलकर विवेकानंद कर दिया। स्वामी जी ने अपनी भारत यात्रा में भारत में व्याप्त भुखमरी और गरीबी को देखा। वह पहले ऐसे नेतृत्वकर्त्ता थे जिन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त गरीबी और भुखमरी की मुखर आलोचना की थी।
 
1893 में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म संसद में भाग लेना स्वामी जी के जीवन तथा उनके उद्देश्य को प्राप्त करने की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण चरण था। इसी संसद में दिये गए भाषण ने उन्हें पाश्चात्य जगत् का प्रथम सांस्कृतिक दूत बना दिया। इसे निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता है:
  स्वामी जी ने हिन्दू दर्शन, जीवन शैली और संस्थाओं की व्याख्या पाश्चात्य जगत् में सरलतम शब्दों में की। जिससे कि पाश्चात्य समाज इसे भलीभाँति समझ सके।
  उन्होंने पाश्चात्य समाज को यह अनुभव करवाया कि वह स्वयं के उद्धार हेतु भारतीय आध्यात्मिकता से बहुत कुछ सीख सकता है।
  उन्होंने पाश्चात्य विश्व के समक्ष यह सिद्ध किया कि अपनी गरीबी और पिछड़ेपन के बावजूद भी भारत का विश्व संस्कृति को अमूल्य योगदान है।
 
इस प्रकार स्वामी विवेकानंद ने भारत का अन्य विश्व के देशों के साथ सांस्कृतिक अलगाव समाप्त करने का प्रयास किया। वह भारत के प्रथम सांस्कृतिक राजदूत बनकर पाश्चात्य जगत् गए। इसके अतिरिक्त, भारत के सांस्कृतिक एकीकरण में भी विवेकानंद का अभूतपूर्व योगदान है। जैसे-
  स्वामी जी ने हिन्दू धर्म और दर्शन को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
  हिन्दू धर्म के विभिन्न संप्रदायों के मध्य प्रतिस्पर्द्धा एवं विरोध को समाप्त कर एक राष्ट्रीय पहचान के सूत्र में बांधा।
  स्वामी जी ने पाश्चात्य संस्कृति के सर्वोत्तम तत्त्वों का भारतीय संस्कृति में विलय का कार्य किया।
  स्वामी जी ने भारतीय दर्शन में स्वयं के चिंतन और अनुभव से मौलिक विचारों को जोड़ा।
 
  इस प्रकार निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि स्वामी विवेकानंद ने पाश्चात्य जगत् में भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार तो किया ही, स्वयं के अकाट्य प्रयासों से भारत का सांस्कृतिक एकीकरण भी किया।


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