GS Paper-3 Science-Tech. (विज्ञान-प्रौद्योगिकी) Part- 1 (Q-4)

GS PAPER-3 (विज्ञान-प्रौद्योगिकी) Q-4
 
https://upscquiztest.blogspot.com/

Q.4 - अपराधों की जाँच दर में वृद्धि एवं देश की न्यायिक प्रणाली को समर्थन देने एवं उसे सुदृढ़ बनाने के लिये डीएनए आधारित फॉरेंसिक प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोग को विस्तार देने के उद्देश्य से लाई गई डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग एंव अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक, 2018 के महत्त्व एवं उसकी सीमाओं को रेखांकित कीजिये।
 
उत्तर :
भूमिका:
व्यक्ति के पहचान के लिये डीएनए प्रोफाइलिंग तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें व्यक्ति के शरीर से लिये गए नमूने जैसे- बाल, खून लार आदि द्वारा डीएनए प्रोफाइलिंग का निर्माण किया जाता है। यह विभिन्न प्रकार के अपराधों में अपराधी की पहचान में सहायक होता है।

विषय-वस्तु
DNA प्रोफाइलिंग बिल की विशेषताओं पर चर्चा -
इसी संबंध में लाए गए DNA टेक्नोलॉजी (उपयोग एवं अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक, 2018 में कुछ लोगों की पहचान स्थापित करेन हेतु DNA टेक्नोलॉजी के प्रयोग के रेगुलेशन का प्रावधान किया गया है।

विधेयक की प्रमुख विशेषताएँ-
  DNA डेटा का प्रयोग: DNA परीक्षण की अनुमति केवल विधेयक की अनुसूची में उल्लिखित मामलों (जैसे-भारतीय दंड संहिता, 1960 के अंतर्गत अपराधों, पितृत्व निर्धारण से संबंधित मुकदमों एवं असहाय बच्चों की पहचान) के लिये दी जाएगी।
  DNA डेटा के प्रयोग के लिये अनुमति: DNA प्रोफाइल तैयार करते समय जाँच अधिकारियों द्वारा किसी व्यक्ति के शारीरिक पदार्थों को इक्ट्ठा किया जा सकता है एवं कुछ स्थितियों में उस व्यक्ति से सहमति लेना आवश्यक होगा।
  DNA डेटा बैंक: इसके तहत राष्ट्रीय DNA डेटा बैंक और क्षेत्रीय DNA डेटा बैंक की स्थापना का प्रावधान किया गया है जो DNA प्रयोगशालाओं से मिलने वाले DNA प्रोफाइल्स को संग्रहीत करेंगे।
  DNA नियामक बोर्ड: विधेयक के अंर्तत DNA नियामक बोर्ड की स्थापना का प्रावधान है जो यह सुनिश्चित करेगा कि DNA बैंकों, प्रयोगशालाओं और अन्य व्यक्तियों के DNA प्रोफाइल्स से संबंधित सूचनाओं को गोपनीय रखा जाए।
  DNA लेबोरेट्रीज: DNA टेस्टिंग करने वाली किसी भी लेबोरेट्री को बोर्ड से अधिकारिक मान्यता प्राप्त करनी होगी। इनसे DNA सैपल्स के कलेक्शन, स्टोरिंग, टेस्टिंग और विश्लेषण में गुणवत्ता के मानदंडों के पालन की अपेक्षा की जाती है। 
  शामिल अपराध: विधेयक जिन विभिन्न अपराधों के लिये दंड विनिर्दिष्ट करता है, वे हैं- DNA सूचना का खुलासा, अनुमति के बिना DNA सैपल का इस्तेमाल आदि।

DNA प्रोफाइलिंग बिल की सीमाएँ -
  डीएनए की जानकारी एकत्र करने हेतु फोरेंसिक प्रयोगशालाओं के प्रयोग से गोपनीयता के उल्लंघन की आशंका हो सकती है।
  डेटाबेस केवल आपराधिक जाँच से संबंधित जानकारी संग्रहीत करेंगे और संदिग्धों के विवरण हटा दिये जाएंगे जो उचित नहीं है।
  डीएनए प्रोफाइलिंग तकनीकें भी सैंपल में मिलावट के कारण गलत परिणाम दे सकती है।
  कंप्यूटर में संग्रहित डेटाबेस का हैकर्स द्वारा दुरूपयोग होने की संभावना भी जतायी जा रही है।
  DNA साक्ष्य को क्राइम वाले जगह पर अध्यारोपित भी किया जा सकता है।
 
निष्कर्ष:
फोरेसिंक डीएनए प्रोफाइलिंग का ऐसे अपराधों के समाधान में स्पष्ट महत्त्व है जिनमें मानव शरीर (जैसे हत्या, दुष्कर्म, मानव तस्करी या गंभीर रूप से घायल) को प्रभावित करने वाले एवं संपत्ति (चोरी, सेंधमारी एवं डकैती सहित) की हानि से संबंधित मामलों से जुड़े अपराधों का समाधान किया जाता है। अपराधों के ऐसे वर्गों में इस प्रौद्योगिकी के उपयोग से सिर्फ न्यायिक प्रक्रिया में तेजी आएगी बल्कि सजा दिलाने की दर में भी वृद्धि होगी। परंतु कुछ नैतिक पहलुओं पर भी ध्यान देना होगा क्योंकि व्यक्ति के DNA प्रोफाइल का रिकार्ड रखना उस व्यक्ति के DNA के स्वामित्व का उल्लंघन होगा।

Tags