भारत द्वारा अपनी सुरक्षा व क्षेत्रीय शक्ति संतुलन स्थापित करने के उद्देश्य से वर्ष 1974 में शांतिपूर्ण परमाणु परीक्षण किया गया था। जिसकी प्रतिक्रियास्वरूप विश्व के प्रमुख परमाणु आपूर्तिकर्त्ता देशों द्वारा परमाणु और इससे संबंधित निर्यात के वैश्विक कारोबार को नियंत्रित करने के लिये वर्ष 1975 में परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) की स्थापना की गई और भारत पर कई प्रतिबंध आरोपित किये गए।
इस संदर्भ में एन.एस.जी. द्वारा परमाणु तकनीक के हस्तांतरण हेतु कुछ मापदंड निर्धारित किये गए हैं जो निम्न हैं-
→ यह सुनिश्चित करना की परमाणु प्रौद्योगिकी का आयात करने वाला देश इसका उपयोग हथियार बनाने में नहीं करेंगे।
→ परमाणु तकनीक की चोरी व इसके दुरुपयोग पर अंकुश लगाना।
→ समूह द्वारा परमाणु तकनीक का हस्तांतरण उन्हीं देशों को किया जाएगा जहाँ अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के सुरक्षा मानदंड लागू हैं।
→ परिणामस्वरूप भारत जो ब्रिटेन इत्यादि परमाणु ऊर्जा संपन्न देशों से प्रौद्योगिकी का आयात करता था, पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया। इसके बावजूद भारत ने वर्ष 1998 में द्वितीय परमाणु परीक्षण कर डाला, इससे भारत के प्रति एन.एस.जी. का रुख और सख़्त हो गया। तथा भारत के लिये यह अनिवार्य बना दिया गया कि जब तक भारत एन.पी.टी. पर हस्ताक्षर नहीं करेगा उसके साथ परमाणु ऊर्जा का व्यापार नहीं किया जाएगा।
→ परंतु वर्ष 2007-2008 के दौरान भारत के बेहतर रिकॉर्ड को देखते हुए एन.एस.जी. ने कुछ रियायतें प्रदान की ताकि भारत एन.एस.जी. के सदस्य देशों के साथ परमाणु ऊर्जा का आदान-प्रदान कर सके। इसी संदर्भ में भारत द्वारा अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु समझौता व हाल में जापान के साथ किया गया परमाणु समझौता उल्लेखनीय है।
→ लेकिन वर्तमान में आर्थिक विकास की धुरी बन चुकी परमाणु ऊर्जा की बढ़ती आवश्यकता को देखते हुए भारत को परमाणु ऊर्जा के व्यापार में पूरी रियायत की आवश्यकता है इसी को ध्यान में रखते हुए भारत वर्ष 2010 से ही एन.एस.जी. की सदस्यता हेतु प्रयासरत है। किंतु चीन व कुछ अन्य देशों के विरोध की वज़ह से भारत अब तक इसका सदस्य नहीं बन पाया है।
→ ध्यान देने योग्य है कि इस संदर्भ में वर्तमान राजग सरकार द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 2014 से ही सशक्त कूटनीतिक पहल की जा रही है। जिसकी परिणति के रूप में भारत के एमटीसीआर व वासेनार ग्रुप में प्रवेश के तौर पर देखा जा सकता है और भारत एन.एस.जी. की सदस्यता की दहलीज़ पर खड़ा है। जहाँ भारत का समर्थन कई विकसित व विकासशील देश कर रहे हैं।
→ इस प्रकार भारत के एन.एस.जी. की सदस्यता हेतु एक बार पुन: कूटनीतिक स्तर पर प्रयास करने होंगे और अपने विरोधियों को अपनी तरफ करना होगा ताकि भविष्य में भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा कर सके।