→ स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश के आधार पर 42वें संवैधानिक संशोधन के माध्यम से अनुच्छेद 51A के तहत मौलिक कर्त्तव्य शामिल किये गए।
→ मौलिक कर्त्तव्यों को देशभक्ति की भावना को बढ़ावा देने तथा भारत की एकता को बनाए रखने के लिये भारत के सभी नागरिकों के नैतिक दायित्वों के रूप में परिभाषित किया गया है। वर्तमान में मौलिक कर्त्तव्यों की संख्या 11 है।
→ वस्तुत: मौलिक कर्त्तव्यों को मूल अधिकारों के समान न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं बनाया गया है, अर्थात् इनके हनन के खिलाफ कोई संस्तुति नहीं है। इसलिये कुछ आलोचकों द्वारा इसे खोखला दस्तावेज़ के रूप में माना जाता है।
वर्मा समिति ने कुछ मूल कर्त्तव्यों की पहचान एवं उनके क्रियान्वयन के लिये कानूनी प्रावधानों को लागू करने की व्यवस्था की, जैसे:-
→ राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम, 1971 भारत के संविधान, राष्ट्रीय ध्वज एवं राष्ट्रीय गान के अनादर का निवारण करता है।
→ सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 जाति एवं धर्म से संबंधित अपराधों पर दंड की व्यवस्था करता है।
→ वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियों के व्यापार पर प्रतिबंध लगाता है।
वस्तुत: मूल कर्त्तव्यों का अपना महत्त्व है, जैसे:
→ ये नागरिकों के लिये प्रेरणास्रोत हैं और उनमें अनुशासन और प्रतिबद्धता को बढ़ाते हैं।
→ मूल कर्त्तव्य राष्ट्र विरोधी एवं समाज विरोधी गतिविधियों के खिलाफ चेतावनी के रूप में कार्य करते हैं।
→ मूल कर्त्तव्य, अदालतों को किसी विधि की संवैधानिक वैधता एवं उनके परीक्षण के संबंध में सहायता करते हैं।
→ मूल कर्त्तव्य विधि द्वारा लागू किये जाते हैं। इनमें से किसी के भी पूर्ण न होने पर या असफल रहने पर संसद उचित अर्थदंड या सज़ा का प्रावधान कर सकती है।
→ वस्तुत: मूल कर्त्तव्य केवल खोखला दस्तावेज़ नहीं है बल्कि यह नागरिकों के लिये प्रेरणा के स्रोत एवं सचेतक के रूप में कार्य करते हैं, आवश्यकता है मूल कर्त्तव्यों के संदर्भ में अधिक-से-अधिक जागरूकता बढ़ाने की, जिससे ज़िम्मेदार समाज का निर्माण हो सके।