आयुष्मान भारत योजना की विफलता


आयुष्मान भारत योजना की विफलता
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पूरे विश्व के राजनीतिक एजेंडे में स्वास्थ्य का क्षेत्र बार-बार सबसे ऊपर रहा है। विभिन्न क्षेत्रों के बीच यह भावुक विवाद से जुडा विषय है। और इसलिए यह हमेशा ही चर्चा के लिए एक लोकप्रिय विषय बन जाता है।

अमेरिका जैसे शक्तिशाली और विकसित देश में एक अत्यंत खर्चीली स्वास्थ्य नीति चलाई जाती है। परंतु यह बहुत नहीं कही जा सकती। भारत में, कई नीतिगत घोषणाओं में अमेरिकी स्वास्थ्य प्रणाली की कुछ विशेषताओं का अनुकरण करते हुए, स्वास्थ्य के क्षेत्र में निजी पहल और बीमा मार्ग को बनाए रखने का प्रयत्न किया गया है। इसके लिए आयुष्मान भारतयोजना लाई गई। एक वर्ष के भीतर ही इस योजना में धोखाधड़ी की अनेक घटनाएं सामने आने लगीं। राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर इसकी जांच के लिए अनेक इकाइयां बनाई गईं, और इनकी भी सांठ-गांठ शुरू हो गई है।

भारत की स्वास्थ्य नीति की इस विफलता को जांचने के लिए एक बार अमेरिकी स्वास्थ्य नीति को पूरी तरह से देखना-समझना चाहिए। अमेरिका की स्वास्थ्य प्रणाली, प्रशासनिक और तकनीकी रूप से गहन रही है। यहाँ के स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च में से 50% स्वास्थ्य कर्मियों के वेतन में दिया जाता है। इसके अलावा भी गैर-मैदानिक कार्यकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग तैयार हो गया है। स्वास्थ्य पर खर्च किए गए हर पैसे की तुलना में परिणाम बहुत कम मिलते हैं।

आयुष्मान भारतयोजना को ऐसे बनाया गया है, जहां सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय, सकल घरेलू उत्पाद का एक प्रतिशत से अधिक नहीं है। 2019-20 के एक अध्ययन के आधार पर कहा जा सकता है कि इसका आवंटन लक्ष्य से दूर केवल एक चैथाई लोगों को मिला होगा। 2020-21 में स्वास्थ्य क्षेत्र में आवंटन को मामूली रूप से बढ़ाया गया है। आयुष्मान भारतके लिए यह यथावत है।

निःसंदेह इस योजना में निधि की कमी है, और यह जटिलताएं लिए हुए है। अत्याधुनिक तकनीक और अत्याधुनिक प्रणालियों के साथ, यह इस प्रकार के व्यवसायों को बढ़ावा दे सकता है, जो अनैतिक हों। इस प्रकार से लूटा जा रहा धन नैतिक चिंताओं को जन्म देता है। इसमें और अधिक निधि लगाने से तो अच्छा है कि सार्वजनिक अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों के निर्माण में उसे लगाया जाए। इन केंद्रों के निर्माण से शायद स्वास्थ्य क्षेत्र में कुछ सुधार देखने को मिलते।

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