कई महत्त्वपूर्ण प्रावधानों की मौजूदगी और अनेक पहलों के बावज़ूद भारत में हाथ से मैला ढोने की प्रथा आज भी जारी है। दरअसल, यह प्रथा एक जाति विशेष से जुड़ी हुई है, जबकि संविधान का अनुच्छेद 46 कहता है कि राज्य समाज के कमज़ोर वर्गों मुख्य रूप से अनुसूचित जाति और जनजाति की सामाजिक अन्याय से रक्षा करेगा और उन्हें हर तरह के शोषण का शिकार होने से बचाएगा।
किसी व्यक्ति द्वारा हाथों से मानवीय अपशिष्टों की सफाई करने या सर पर ढोने की प्रथा को ‘हाथ से मैला ढोने की प्रथा’ या ‘मैनुअल स्कैवेंजिंग’ कहते हैं। मैनुअल स्कैवेंजिंग की यह प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही भारत की जाति व्यवस्था से संबंधित है, जिसमें माना जाता है कि यह तथाकथित निचली जातियों का कार्य है। महत्त्वपूर्ण प्रावधानों की मौजूदगी और अनेक पहलों के बावजूद यह प्रथा क्यों कायम है इसे निम्नलिखित बिन्दुओं के अंतर्गत देखा जा सकता है –
→ देश में बड़ी संख्या में ऐसे शौचालय हैं जहाँ हाथ से अपशिष्ट हटाने की ज़रूरत पड़ती है।
→ यहाँ तक कि स्वच्छ भारत अभियान के तहत बनाए जा रहे शौचालयों के गड्ढे इतने छोटे हैं कि ये जल्दी ही मानवीय अपशिष्टों से भर जाएंगे।
→ ऐसे में शौचालयों का विसंगतियुक्त निर्माण इस प्रथा के जारी रहने का एक बड़ा कारण है।
→ कानूनी दायित्वों के बावजूद, राज्य सरकारें हाथ से मैला साफ करने की ज़रूरत वाले उन शौचालयों को तोड़ने और पुनर्निर्माण करने के लिये उत्सुक नहीं हैं।
→ राज्य सरकारें "सफाई कर्मचारी" के तौर पर नियुक्त कर्मियों से यह काम कराती हैं। दरअसल, मैनुअल स्कैवेंजर्स की परिभाषा को लेकर भी स्पष्टता का अभाव है।
→ मानवीय अपशिष्टों से भरे नाले की सफाई करने वाला एक सफाई कर्मचारी मैनुअल स्कैवेंजर ही है, लेकिन सरकारें ऐसा नहीं मानती हैं।
→ चूँकि मानवीय अपशिष्टों के निपटान की कोई उचित व्यवस्था नहीं है, इसलिये भारतीय रेल ‘मैनुअल स्कैवेंजर्स’ का सबसे बड़ा नियोक्ता है।
→ कुछ ट्रेनों की छोड़ दें तो रेलवे अपने 80,000 शौचालयों और 1.15 लाख किलोमीटर लंबे रेलवे ट्रैक को साफ रखने के लिये किसी भी तकनीक का इस्तेमाल नहीं करती है।
→ यह एक कड़वा सच है कि यह अमानवीय प्रथा हज़ारों लोगों की आजीविका का साधन भी है।
→ बहुत से मैनुअल स्कैवेंजर्स इस डर से यह काम नहीं छोड़ना चाहते कि कहीं उनकी आजीविका ही संकट में न पड़ जाए।
→ पुनर्वास कार्यक्रमों के ज़रिये उनकी इन चिंताओं का समाधान किया जा सकता है, लेकिन योजनाओं का वास्तविक धरातल पर अमल न हो पाने की वज़ह से ऐसा नहीं हो पा रहा है।
→ यदि कोई प्रशासन इस प्रथा पर अंकुश नहीं लगा पाता तो उसके लिये क्या दंडात्मक प्रावधान हों, इस संबंध में वर्ष 2013 का अधिनियम कुछ नहीं कहता है।
→ एक ड्राफ्ट बिल के ज़रिये यह व्यवस्था की गई है कि ऐसे मैनुअल स्कैवेंजर्स जो मास्क, दस्ताने और विशेष सूट का इस्तेमाल करते हैं उन्हें मैनुअल स्कैवेंजर्स न माना जाए। लेकिन प्रशासन की उदासीनता की वज़ह से उन्हें ये सामग्रियाँ प्राप्त नहीं हो पाती हैं।
→ यद्यपि इस संबंध में ‘मैनुअल स्केवेंजर्स का रोज़गार और शुष्क शौचालय का निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993’ तथा ‘मैनुअल स्केवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013’ जैसे कानूनों के तहत भारत में हाथ से मैला ढोने की प्रथा को प्रतिबंधित कर दिया गया है। परंतु इस प्रथा के अभी तक जारी रहने के उपर्युक्त कारणों ने इनकी असफलता को ही दर्शाया है
अतः इस समस्या के अन्य समाधानों को ढूँढने की आवश्यकता है जैसे कि-
→ सीवर प्रणाली या सेप्टिक टैंकों की सफाई हेतु नई और स्थानिक तकनीकी के विकास पर ज़ोर दिया जाना चाहिये ताकि मानवीय संलग्नता को इस क्षेत्र से कम किया जा सके।
→ जैव तकनीकी के विकास के साथ कुछ ऐसे पौधे या बैक्टीरिया का विकास किया जाना चाहिये जो सीवर प्रणाली या सेप्टिक टैंकों के अपशिष्ट का निपटान उचित ढंग से कर सकें और यह पर्यावरण के अनूकूल हो।
→ स्वच्छ भारत अभियान में परंपरागत शौचालयों के स्थान पर जैव शौचालयों के निर्माण को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये जिससे सेप्टिक टैंकों के अपशिष्ट के निस्तारण में पुनः मानवीय सहयोग की आवश्यकता न पड़े।
→ तकनीकी विकास की सहायता से रोबोटिक्स के ज़रिये सीवेज कर्मियों का प्रतिस्थापन किया जाना चाहिये तथा उन्हें बेरोज़गारी से बचाने हेतु इस नई तकनीक के उपयोग में उन्हें दक्ष बनाया जाना चाहिये।
→ केरल में इस दिशा में सराहनीय प्रयास शुरू किया गया है, केरल जल प्राधिकरण तथा स्टार्टअप कंपनी जेनरोबोटिक्स द्वारा विकसित रोबोट का हाल में प्रायोगिक तौर पर इस्तेमाल किया गया जो सीवर की सफाई में इंसानों की जगह इस्तेमाल किया जाएगा।
→ जल बोर्ड एवं विद्युत बोर्ड के समान सीवेज प्रबंधन हेतु एक अलग नियामक संस्था यथा- सीवेज बोर्ड आदि का गठन किया जाना चाहिये ताकि सीवर प्रणाली का विकास और उसका रख-रखाव अलग-अलग संस्थाओं द्वारा किया जा सके।
→ गौरतलब है कि महात्मा गांधी और डॉ. अंबेडकर दोनों ने ही हाथ से मैला ढोने की प्रथा का पुरज़ोर विरोध किया था। यह प्रथा संविधान के अनुच्छेद 15, 21, 38 और 42 के प्रावधानों के भी खिलाफ है। आज़ादी के 7 दशकों बाद भी इस प्रथा का जारी रहना देश के लिये शर्मनाक है और जल्द-से-जल्द इसका अंत होना चाहिये।