→ सुरक्षा परिषद की 1267 अलकायदा प्रतिबंध समिति (Al Qaeda Sanctions committee) के समक्ष अज़हर मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करने के लिये फ्राँस, ब्रिटेन और अमेरिका ने प्रस्ताव पेश किया था। इसके बाद समिति ने सदस्य देशों को इस संदर्भ में आपत्ति दर्ज करने के लिये 10 दिनों का समय दिया।
→ सुरक्षा परिषद में चौथी बार चीन ने इस प्रस्ताव पर वीटो का इस्तेमाल किया है। चीन ने इसे ‘तकनीकी रोक’ (Technical Hold) बताया जो छह महीनों के लिये वैध है तथा इसे आगे तीन महीने के लिये और बढ़ाया जा सकता है। ‘तकनीकी रोक’ लगाने वाला यह चीन का चौथा वीटो है। अपने इस कदम से चीन ने भारत को यह जता दिया है कि आतंकवाद भारत की अपनी राष्ट्रीय समस्या है और इसे सुलझाने का ज़िम्मा भी उसी का है। साथ ही चीन ने यह भी जता दिया है कि ‘वैश्विक आतंकवाद’ और उसकी दक्षिण एशियाई नीतियों में अंतर बरकरार है तथा भारतीय चिंताओं को लेकर उसके दृष्टिकोण में कोई बदलाव नहीं आया है।
→ वीटो (Veto) लैटिन भाषा का शब्द है जिसका मतलब होता है ‘मैं अनुमति नहीं देता हूँ। ’ 1920 में लीग ऑफ नेशंस की स्थापना के बाद ही वीटो अस्तित्व में आया। 1945 में यूक्रेन के शहर याल्टा में एक सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन का आयोजन द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की योजना बनाने के लिये हुआ था। इसी में तत्कालीन सोवियत संघ के प्रधानमंत्री जोसफ स्टालिन ने वीटो पावर का प्रस्ताव रखा। 1946 को पहली बार वीटो पावर का इस्तेमाल तत्कालीन सोवियत संघ (USSR) ने किया था।
→ मौजूदा समय में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्यों- चीन, फ्राँस, रूस, यू.के. और अमेरिका के पास वीटो पावर है। स्थायी सदस्यों के फैसले से अगर कोई सदस्य सहमत नहीं है तो वह वीटो पावर का इस्तेमाल करके उस फैसले को रोक सकता है। मसूद अज़हर के मामले में यही हुआ। सुरक्षा परिषद के चार स्थायी सदस्य उसे वैश्विक आतंकी घोषित करने के समर्थन में थे, लेकिन चीन उसके विरोध में था और उसने वीटो लगा दिया।
→ इसे अमेरिका और इज़राइल के सबंधों के परिप्रेक्ष्य में समझना होगा। सुरक्षा परिषद में भी जब-जब इज़राइली हितों पर आँच आती है, अमेरिका अपने वीटो अधिकार का इस्तेमाल करता है। ठीक ऐसा ही पाकिस्तान के लिये चीन कर रहा है।
निष्कर्ष:
यह कहा जा सकता है कि आतंकवाद किसी देश विशेष की समस्या नहीं है। यह ऐसा अभिशाप है जिससे दुनिया के छोटे-बड़े देश पीड़ित हैं। लगभग सभी महाद्वीप किसी-न-किसी रूप में इससे ग्रस्त हैं। अत: संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्था को इस पर व्यापक प्रहार करने की आवश्यकता है और इस प्रयास में विश्व के छोटे-बड़े सभी देशों का सहयोग भी अपेक्षित है। इसे किसी भी तरीके से क्षेत्रीय लाभ या हानि के दृष्टिकोण से नहीं देखा जाना चाहिये।