→ हाल ही में अमेरिका ने ईरान के साथ एक परमाणु समझौते से स्वयं को अलग कर लिया है। उसका कहना है कि इस समझौते में ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम 2025 के अलावा परमाणु गतिविधियों तथा यमन और सीरिया में जारी संघर्षों में इसकी भूमिका को शामिल नहीं किया गया था। वियना में 14 जुलाई, 2015 को ईरान तथा 5 सदस्य देशों (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्य-अमेरिका, चीन, फ्राँस, रूस, ब्रिटेन) के साथ-साथ जर्मनी एवं यूरोपीय संघ द्वारा भी इस समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
→ अमेरिका के ईरान समझौते से अलग होने के कारण भारत-ईरान संबंधों पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ने की संभावना है। वस्तुतः भारत के ईरान के साथ आर्थिक एवं सामरिक दोनों हित जुड़े हुए हैं। जहाँ एक तरफ ईरान भारत के लिये तीसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्त्ता देश है और भारत ने ईरान में चाबहार बंदरगाह का विकास कर दोनों देशों के आर्थिक संबंधों को सुदृढ़ किया है। वहीं, दूसरी तरफ चाबहार बंदरगाह ईरान में भारत के सामरिक हितों का परिचायक है। जिसके माध्यम से भारत चीन द्वारा पाकिस्तान में निर्मित ग्वादर बंदरगाह के रास्ते मध्य एशिया में चीन के बढ़ते प्रभुत्व को कम कर सकता है साथ ही मध्य एशिया में अपनी स्थिति को मजबूती प्रदान करने एवं ईरान के रास्ते अफगानिस्तान तक पहुँच के लिये स्पष्ट मार्ग का निर्धारण किया जा सकता है। जबकि भारत अमेरिकी संबंध वर्तमान में लेन-देन की नीति वाले बन रहे हैं। हालाँकि अमेरिकी रुख पाकिस्तान के प्रति सख्त रहा है किंतु भारतीय प्रतिष्ठान भी इंडो-पैसिफिक रणनीति के प्रति अधिक प्रतिबद्ध रहा है।
→ अमेरिका द्वारा उठाया गया यह कदम ईरान समेत पश्चिमी एशिया में अस्थिरता ला सकता है जहाँ 8 करोड़ से अधिक भारतीय कार्यरत हैं, इसके साथ ही ईरान में भारत की चाबहार योजना पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है। चाबहार योजना के प्रभावित होने से अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में भारत द्वारा दी जाने वाली 1 बिलियन डॉलर की सहायता एवं 100 अन्य छोटी परियोजनाओं पर किया जाने वाला कार्य भी प्रभावित हो जाएगा।
→ हालाँकि भारत और ईरान दोनों के लिये आपसी संबंध रणनीतिक महत्त्व वाला है और दोनों ही प्रतिबंधों के बावजूद अपने इन संबंधों को बनाए रखना चाहेंगे। इसका प्रमाण ईरान द्वारा भारत को निर्बाध तेल की आपूर्ति एवं भारत द्वारा अमेरिकी कदम पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त न करने के रूप में देखा जा सकता है।
→ अतः कहा जा सकता है कि भारत-ईरान संबंधों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों का प्रभाव अल्पकालिक हो सकता है परंतु दीर्घकाल के संदर्भ में ये संबंध उतने ही मजबूत हैं।