→ पूंजीवादी और मिश्रित अर्थव्यवस्था के रूप में भारत-अमेरिकी संबंध हमेशा से ही सहयोगी बने रहे हैं पंरतु वर्तमान में यह लेन-देन की नीति पर आधारित हो रहे हैं जिसका एक मुख्य कारण भारत अमेरिका के मध्य विभिन्न मुद्दों पर असहमति का होना है। इन असहमतियों के कारण दोनों देशों के मध्य संबंधों में अस्थिरता आ रही है।
→ हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को रणनीतिक क्षेत्र न मानते हुए इसे एक प्राकृतिक भू-क्षेत्र के रूप में संबोधित किया, लेकिन वहीं अमेरिकी रक्षा सचिव ने इस क्षेत्र को “प्रायोरिटी थियेटर” और “सैन्य अधिकार के लिये व्यापक सुरक्षा रणनीति के सबसेट” के रूप में उल्लेखित किया है। जिसका सीधा अर्थ अमेरिका द्वारा इस क्षेत्र को रणनीतिक अथवा सामरिक क्षेत्र के रूप में बनाए रखना है। मोदी ने चीन के साथ संबंध सुधार तथा हिंद प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता बहाली के लिये अमेरिका, रूस और चीन के साथ भारत के संबंधों को एक समान रूप में संदर्भित किया है, जबकि अमेरिका द्वारा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की गतिविधियों का मुकाबला करने का वादा किया गया है। इसके अतिरिक्त भारत-अमेरिका के मध्य अमेरिका के नए स्टील और एल्युमीनियम टैरिफ, H1B वीजा में प्रस्तावित कटौती और H4 वीजा रद्द करना, डेयरी और पोर्क उत्पादों के अमेरिकी निर्यात के प्रतिरोध पर भारत के टैरिफ, चिकित्सा उपकरणों पर भारतीय मूल्यों में कटौती, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अमेरिकी कंपनियों के लिये भारतीय सर्वर पर डेटा स्थानीयकरण के नियम लागू करना तथा हार्ले-डेविडसन जैसे विवादास्पद मुद्दे भी देखे जा सकते हैं।
→ नए अमेरिकी कानून तथा रूस, ईरान पर अमेरिका के प्रतिबंध भारत-अमेरिकी संबंधों के लिये बड़ी चुनौतियाँ प्रस्तुत कर रहे हैं। वस्तुतः ट्रंप प्रशासन के दौरान भारत और अमेरिका के मध्य पहले की अपेक्षा संबंधों में अधिक अस्थिरता आई है।
→ गत वर्ष मोदी और ट्रंप द्वारा 2 + 2 वार्ता की घोषणा की गई थी। यह दो देशों के मध्य एक साथ ही दो-दो मंत्री स्तरीय संवाद है। वर्तमान में भारत और अमेरिका के बीच संवाद को नया रूप देने के लिये नियमित वार्ता का एक ऐसा ढाँचा विकसित किया जा रहा है जिससे दोनों देशों के बीच रक्षा के क्षेत्र में साझेदारी और मजबूत होगी। इसका एक अन्य उद्देश्य यह भी है कि हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र में शांति और स्थिरता कायम रखने में भारत-अमेरिका मिलकर अपनी भूमिका निभाएँ। इस प्रस्तावित संरचना के तहत अब भारत और अमेरिका के बीच ‘2 + 2’ व्यवस्था के तहत नियमित रूप से मंत्रिस्तरीय वार्ता होती रहेगी और दोनों देशों के रक्षा एवं विदेश सचिवों के बीच सतत् संपर्क बना रहेगा।
→ अतः स्पष्ट है 2 + 2 वार्ता के तहत भारत-अमेरिका के बीच संबंधों में संतुलन स्थापित किया जा सकेगा, साथ ही हिंद प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता बढ़ने से दोनों देशों के बीच रणनीतिक विचार-विमर्श और बढ़ेगा।