GS Paper-1 Indian Society (भारतीय समाज) Part-1 (Q-21)

GS PAPER-1 (भारतीय समाज) Q-21
 
GS Paper-1 Indian Society (भारतीय समाज)


Q.21 - "सांप्रदायिकता 21वीं सदी की प्रमुख सामाजिक बुराइयों में से एक है। भारत में सांप्रदायिक हिंसा को उत्पन्न और प्रोत्साहित करने में सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और प्रशासनिक कारक सामूहिक रूप से ज़िम्मेदार हैं।" इस कथन की चर्चा कीजिये और इस सामाजिक बुराई को रोकने के लिये उपाय सुझाइए।
उत्तर :
  सांप्रदायिकता किसी विशेष धार्मिक समुदाय के प्रति हितों में अन्तर्विरोध को दर्शाता है और इस आधार पर इसे किसी दूसरे समुदाय से पृथक करता है। भारत में एक बहुभाषिक, बहुधार्मिक और बहुसांस्कृतिक समाज होने के नाते हितों में टकराव आना स्वाभाविक है। सांप्रदायिकता एक सामाजिक परिघटना के रूप में तनाव, कटुता आदि उत्पन्न करती है जो कभी-कभी विभिन्न समुदायों के मध्य दंगे की स्थिति भी उत्पन्न कर सकती है। यह समाज में एकता में अनेकताकी भावना को दुष्प्रभावित करती है, साथ-ही-साथ यह घृणा एवं हिंसा को प्रोत्साहित कर हमारी धर्मनिरपेक्ष छवि को आघात पहुँचाती है।
  भारत में सांप्रदायिकता के प्रसार में विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और प्रशासनिक कारक उत्तरदायी हैं। कमज़ोर सामाजिक-आर्थिक दशा अक्सर सांप्रदायिकता के जनन में सहायक होती है। गरीबी और बेरोजगारी लोगों में हताशा की भावना उत्पन्न करती है जो अशिक्षा, पिछड़ापन एवं अज्ञानता आदि के लिये उत्तरदायी है। बेरोज़गार युवकों को धार्मिक कट्टरपंथी आसानी से अपनी गिरफ्त में ले लेते हैं। 
  भारत में विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिये धर्म और संस्कृति पर आधारित विभिन्न समुदायों के मध्य मतभेद उत्पन्न करने में सांप्रदायिकता को एक राजनीतिक व्यवहार के रूप में इस्तेमाल किया है। 
  राजनीतिक नेताओं की संलिप्तता और प्रशासनिक संरचना की विफलता सांप्रदायिकता को उत्पन्न करने में स्नेहक का कार्य करती है और अंततः यह सांप्रदायिक हिंसा का रूप धारण कर लेती है। 
  कानून-व्यवस्था की निम्न स्थिति सांप्रदायिक हिंसा का एक महत्त्वपूर्ण कारक है। पुलिस एवं समाज विरोधी तत्त्वों की साँठ-गाँठ के कारण, प्रशासन सांप्रदायिक हिंसा रोकने में प्रभावी सिद्ध नहीं हो पाता है। 
  समाज में शांति और सद्भाव को बनाए रखने के लिये और भारत के बहुधार्मिक एवं धर्मनिरपेक्ष छवि के संरक्षण हेतु सांप्रदायिकता पर अंकुश लगाना अपरिहार्य है। सांप्रदायिकता को रोकने हेतु निम्नांकित सुझाव द्रष्टव्य हैं-
  सांप्रदायिकता को रोकने हेतु सरकार को अपने कानूनी और प्रशासनिक ढाँचे में सुधार करना चाहिये। उदाहरण के लिये कानूनों का सख्त क्रियान्वयन करना, कानून एवं व्यवस्था को मज़बूत बनाना आदि को प्राथमिकता मिलनी चाहिये। 
  सरकार के साथ-साथ समुदायों एवं नागरिक समाज को मिलकर सांप्रदायिकता को हतोत्साहित करना चाहिये, ताकि ये हमारे सामाजिक, राजनीतिक चुनावी प्रक्रिया से दूर रहें। 
  विभिन्न समुदायों के मध्य सामाजिक-आर्थिक समानता सुनिश्चित करने हेतु सरकार को निरंतर प्रयास करना चाहिये। 
  राष्ट्र की धर्मनिरपेक्ष भावना की रक्षा हेतु विभिन्न समुदायों के मध्य शिक्षा एवं जागरूकता को बढ़ावा देना चाहिये, ताकि वे राजनीतिक दलों की सांप्रदायिक राजनीति की गिरफ्त में सकें।
  सांप्रदायिकता जैसी बुराई को राष्ट्र तथा राजनीतिक परिदृश्य से पूर्णतः उन्मूलन करने हेतु सरकार, राजनीतिक दलों एवं नागरिक समाज को मिलकर प्रयास करने चाहिये।

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