सांस्कृतिक विरासत केवल स्मारकों तथा वस्तुओं के संग्रह तक ही सीमित नहीं है। इनमें वे परंपराएँ तथा सजीव अभिव्यक्तियाँ भी शामिल हैं जो कि हमें पूर्वजों से प्राप्त हुई हैं तथा हमारे वंशजों को हमसे प्राप्त होंगी, जैसे- मौखिक परंपरा, प्रदर्शन कला, सामाजिक प्रथाएँ, प्रकृति तथा जगत से संबंधित ज्ञान या पारंपरिक शिल्प उत्पादित करने का ज्ञान एवं कौशल। यूनेस्को के अनुसार, ‘अमूर्त सांस्कृतिक विरासत’ परंपरागत, समकालीन तथा एक ही समय में उपस्थित समावेशी, प्रतिनिधिक और समुदाय आधारित होते हैं।
भारत कला एवं संस्कृति के दृष्टिकोण से काफी धनी राष्ट्र है, वर्तमान में यूनेस्को ने भारत के कुछ अमूर्त सांस्कृतिक विरासतों को चिह्नित किया है, जिनके नाम एवं विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
→ वेद पाठः धार्मिक समारोह तथा अनुष्ठान के समय वेद पाठ का विशेष महत्त्व है। वेद पाठ में उच्चारण अभी तक अपरिवर्तित है। अब इन वेद पाठ शैलियों में से 13 बचे हुए हैं।
→ रामलीलाः यह पौराणिक महाकाव्य रामायण पर आधारित दृश्यों की शृंखला है। यह मुख्यतः दशहरे के समय आयोजित किया जाता है।
→ कुडीअट्टमः यह प्राचीन संस्कृत नाटकों का पुरातन केरलीय नाट्य रूप है। इसमें आँखों और हाथों की मुद्राओं का विशेष महत्त्व होता है।
→ रम्मनः यह उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में भूमियाल देवता को समर्पित एक धार्मिक उत्सव है।
→ मुडीयेट्टुः यह थियेटर और नृत्य का मिश्रण है। यह देवी काली और राक्षस दारिका की कहानी पर आधारित है, जिसे केरल के मंदिरों में आयोजित किया जाता है।
→ कालबेलियाः यह राजस्थान का लोक-नृत्य है, जिसे सपेरा समुदाय की महिलाएँ करती हैं।
→ छाऊः यह लोक-नृत्य ओडि़शा, झारखंड तथा पश्चिम बंगाल राज्य में किया जाता है। इसमें मुखौटा और शहनाई का प्रयोग होता है।
→ बौद्ध जापः इसमें सभी प्रमुख पंथों के पवित्र ग्रंथों नींगमा, काग्युड, शाक्य तथा गेलुक का जाप प्रतिदिन किया जाता है।
→ संकीर्तनः यह श्रीकृष्ण की गाथा पर आधारित नृत्य तथा गायन है।
→ जंदीयाला गुरु का ठठेराः पंजाब में ताँबा तथा पीतल के बर्तन बनाने की परंपरागत तकनीक।
→ योगः यह विभिन्न शारीरिक तथा मानसिक अभ्यासों को करने की क्रिया है।
→ नवरोजः यह भारत सहित इस्लामिक देशों में मनाया जाने वाला पारसी नववर्ष है।
अतः अमूर्त विरासत लोगों के मध्य ज्ञान, मूल्यों, परंपराओं तथा नीतियों के आदान-प्रदान में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।