‘वसुधैव कुटुंबकम’ की अवधारणा व्यक्ति को समस्त विश्वरूपी परिवार का सदस्य बनाती है। यह हमें समस्त प्राणियों के दुःख को अपना दुःख समझने तथा अपनी खुशी को प्रत्येक से साझा करने का संदेश देती है।
परंतु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अगर देखा जाए इस अवधारणा में कई विरोधाभास दृष्टिगोचर होते हैं। जैसे, पश्चिमी एशियाई देशों विशेषकर इराक में यजीदी समुदाय के लोगों का शोषण।
यजीदी समुदाय के धार्मिक विश्वास निम्नलिखित हैं:
→ यजीदी स्वयं को आदम का वंशज मानते हैं।
→ यजीदी समुदाय का धार्मिक विश्वास धर्मों, यथा- ईसाई, इस्लाम, जरथुस्ट एवं हिन्दू धर्म के मूल्य-मान्यताओं के करीब है।
→ ये पुनर्जन्म में विश्वास रखते हैं।
→ यजीदी प्रतिदिन पाँच बार प्रार्थना करते हैं।
→ ये अपने ही समुदाय में ही विवाह करते हैं, अगर कोई व्यक्ति अपने समुदाय से इतर वैवाहिक संबंध कायम करता है, तो उसे स्वतः ही निष्कासित मान लिया जाता है।
→ ये पृथ्वी, अग्नि, जल एवं वायु की पवित्रता का विशेष ध्यान रखते हैं।
→ यजीदी समुदाय मुस्लिम बहुल क्षेत्र में विशेषकर इराक अल्पसंख्यक हैं तथा प्रायः उनका शोषण होता है लेकिन इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एवं सीरिया के उदय के बाद उनकी स्थिति अधिक दयनीय हो गई है। धार्मिक आधार पर उन्हें काफिर घोषित कर उनकी हत्या को पुण्य का कार्य बताया गया है। उनके घरों तथा पूजा-स्थलों को नष्ट किया जा रहा है। मजबूरन वे शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं।
→ ऐसी भावना स्पष्ट रूप से वसुधैव कुटुंबकम की धारणा (जो कि सभी के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की कामना करती है) के विरुद्ध है। यजीदी समुदाय के संरक्षण एवं पुनर्वास के लिये समुचित अंतर्राष्ट्रीय प्रयास किये जाने चाहिये। वसुधैव कुटुंबकम् की अवधारणा वैश्विक परिवार के प्रत्येक सदस्य की सुरक्षा को भी प्रेरित करती है।