GS Paper-1 Indian Culture (संस्कृति) Part-1 (Q.24)

GS PAPER-1 (संस्कृतिQ-24
 
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Q.24 - कश्मीर को शेष भारत से जोड़ने में प्राचीन कश्मीरी शैववाद से लेकर मध्यकालीन सूफी परंपरा तक अन्य किसी भी तत्त्व की तुलना में साझा दार्शनिक विचार और परंपरा की अधिक भूमिका रही है। टिप्पणी करें।
उत्तर :
      कश्मीर, अपनी भौगोलिक स्थिति, प्राकृतिक सुन्दरता और शीतोष्ण जलवायु के कारण कला, साहित्य, नाटक, नृत्य और चित्रकला में धनी रहा है। उल्लेखनीय है कि व्यापार एवं राजनीति से इतर एक समान दार्शनिक विचारों और परंपराओं के कारण कश्मीर, शेष भारत से सदैव जुड़ा रहा है। इस संबंध में प्रस्तुत तर्क निम्न प्रकार से  हैं-
  शैवमत के अभिन्न अंग कश्मीरी शैव मत में वर्णित शिवकी अवधारणा, दक्षिण भारत में चर्चित शंकर के अद्वैत दर्शनके ब्रह्म से समानता रखती है। यह प्रमाण कश्मीर के शैवमत शेष भारत के दार्शनिक विचारों के आदान-प्रदान को प्रदर्शित करता है। कश्मीरी शैवमत के प्रमुख अभिनवगुप्त कीतंत्रलोकपुस्तिका में वर्णित तंत्रोंका प्रचार-प्रसार शेष भारत में हुआ।
  शंकराचार्य द्वारा स्थापित पीठों में पूजा हेतु केसरका प्रयोग होता है। यह केसरकश्मीर से मंगाया जाता है।
  भरत मुनि जो दक्षिण से संबंधित थे, ने नाट्यशास्त्र में 36 अध्यायों का वर्णन किया है जिसे विद्वान, कश्मीर शैवमत में वर्णित ‘36 तत्त्वोंसे संबंधित करते हैं जो निस्सन्देह एक समान दार्शनिक विचारों को प्रमाणित करता है।
  कुषाण शासक कनिष्क ने चौथी बुद्ध संगीति कश्मीर में आयोजित की। इसी में बौद्ध धर्म का हीनयान-महायान विभाजन हुआ तथा कश्मीर में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार हुआ।
  कश्मीर की एक पुस्तक योग वशिष्ठवाल्मिकी से संबंधित है, जिन्होंने रामायण की रचना की थी। यह कश्मीर और शेष भारत के सांस्कृतिक संबंधों को प्रदर्शित करता है।
  कश्मीर की प्रसिद्ध कवयित्री लालेश्वरी द्वारा रचित कविताओं ने शेष भारत को कश्मीरी भाषा से अवगत कराया।
  सूफी मत का प्रचार-प्रसार संपूर्ण भारत में हुआ था और कश्मीर भी इससे अछूता नहीं रहा। इसने कश्मीर शेष भारत को एक सूत्र में पिरोने का कार्य किया। कश्मीर में नूरूद्दीन नूरानी और लल्ला आरिफी ने सूफी धर्म का प्रचार किया। उल्लेखनीय है कि लल्ला आरिफी को लाल डेड’ (मदर लल्ला) के नाम से भी जाना जाता है।
  इस प्रकार इन तर्कों के आधार पर दार्शनिक विचारों एवं परंपराओं के संबंध में कश्मीर का शेष भारत से स्पष्ट संबंध दृष्टिगत होता है।
  इसके अतिरिक्त चरक के आयुर्वेद, पाणिनी के व्याकरण, कल्हण की राजतरंगिणी विल्हण के संगीत में शेष भारत की परंपराएँ दर्शन दृष्टिगत होते हैं।

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