वैदिकोत्तर समय में उपस्थित वर्ण व्यवस्था, कर्मकाण्डीय उद्भव, सामाजिक असमानता व शोषण के विरुद्ध बौद्ध धर्म का उदय हुआ। बौद्ध धर्म ने ईसा-पूर्व छठी सदी में भारत की जनता की समस्याओं का व्यावहारिक ढंग से निवारण करने का प्रयास किया।
मानवीय समस्याओं का समाधानः
→ तत्कालीन समय में उपस्थित सामाजिक असमानता को दूर करने हेतु बौद्ध धर्म में अपरिग्रह अर्थात् धन संचय न करने का उपदेश दिया गया जो व्यावहारिक समाधान था।
→ घृणा, क्रूरता, हिंसा व दरिद्रता से अनुप्राणित होती है। इन बुराइयों को दूर करने के लिये किसानों को बीज और अन्य सुविधाएँ, व्यापारियों को धन व श्रमिकों के लिये मज़दूरी जैसे समाधान प्रस्तुत किये गए। इन उपायों की अनुशंसा सांसारिक दरिद्रता को दूर करने के लिये की गई।
→ बौद्ध धर्म ने अहिंसा और जीवमात्र के प्रति दयाभाव को जगाकर देश में पशुधन की वृद्धि की जो किसानों के लिये लाभप्रद था।
→ बौद्ध धर्म ने बौद्धिक और साहित्यिक जगत को तर्क आधारित गुण-दोष विवेचना हेतु प्रेरित करके अंध विश्वास को कम करने का प्रयास किया।
→ बौद्ध धर्म ने स्त्रियों व शूद्रों के लिये अपने द्वार खोलकर समाज पर गहरा प्रभाव डाला। उपदेशात्मक प्रवृत्ति से इतर यह कदम अधिक व्यावहारिक व प्रभावी था।
मानवीय समस्याओं के समाधान के अतिरिक्त बौद्ध धर्म ने कला व स्थापत्य कला को भी प्रभावित किया जो इस प्रकार हैः
→ बौद्ध धर्म के फलस्वरूप स्तूपों, विहारों, चैत्यों का निर्माण हुआ। इसमें सांची, भरहुत, सारनाथ का प्रमुख स्थान है।
→ बौद्ध धर्म का स्पष्ट प्रभाव अजंता, एलोरा के साथ-साथ गांधार, मथुरा व अमरावती शैली पर देखा जा सकता है।
→ बौद्ध धर्म ने पालि भाषा में साहित्य को लिखकर, इसे समृद्ध किया।
निष्कर्ष:
बौद्ध धर्म ने तत्कालीन मानवीय समस्याओं के व्यावहारिक समाधान के साथ-साथ भारतीय कला व स्थापत्य को भी एक नई दिशा प्रदान की।