भारतीय राष्ट्रवाद केवल स्वतंत्रता आंदोलन तक सीमित नहीं था, बल्कि इसके विस्तृत फलक में कला एवं साहित्य जैसे क्षेत्र भी शामिल थे। औपनिवेशिक काल में भारतीय चित्रकला के ऊपर पाश्चात्य प्रभाव अधिक दृष्टिगोचर होने लगा था। भारतीय प्रसंगों को चित्रित करने के लिये संयोजन, परिप्रेक्ष्य तथा यथार्थवाद की पाश्चात्य अवधारणा का इस्तेमाल किया जा रहा था।
इसके प्रतिक्रिया स्वरूप एक ब्रिटिश शिक्षक एर्नेस्ट हैवेल ने मुगल चित्रकला का अनुकरण किया, जिसका अवनींद्रनाथ टैगोर ने समर्थन किया, इसी कला को बंगाल/कलकत्ता शैली के नाम से जाना गया। इसके मुख्य तत्त्व निम्नलिखित हैं:
→ यह शैली अजंता, मुगल, यूरोपीय प्रकृतिवाद तथा जापानी वाश तकनीक का सम्मिश्रण थी।
→ इसमें आबरंगों (water colours) का प्रयोग किया गया।
→ विषय-वस्तु के रूप में भारतीय धर्मों, पौराणिक कथाओं का चित्रण।
→ काल्पनिकता और विचित्रता का समावेश।
→ राष्ट्रवाद से प्रभावित।
→ चित्रकला की यह शैली स्वदेशी आंदोलन के समय अधिक लोकप्रिय हुई। अवनींद्रनाथ टैगोर द्वारा निर्मित भारत माता की चतुर्भुज तस्वीर इस शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर इस शैली के मुख्य संरक्षक थे, उन्होंने विश्व भारती विश्वविद्यालय के माध्यम से इसे प्रोत्साहित किया। अवनींद्रनाथ टैगोर, गजेन्द्रनाथ टैगोर, जैमिनी राय, मुकुल डे तथा नंदलाल इस शैली से जुड़े महत्त्वपूर्ण चित्रकार थे।
निष्कर्ष: उक्त कला शैली ने कला की विभिन्न धाराओं को समाहित कर एक नवीन विधा को प्रस्तुत किया।