GS Paper-1 Indian Culture (संस्कृति) Part-1 (Q.21)

GS PAPER-1 (संस्कृतिQ-21
 
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Q.21 - कुचिपुड़ी नृत्यकला भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक अभिन्न अंग है, जो आज भी विश्व के परंपरागत नृत्य रूपों में भारत का प्रतिनिधित्व करती है। उक्त कथन के संदर्भ में इस कला की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिये।
उत्तर :
      संस्कृति एक सतत् प्रवाह की तरह सदियों से बहते हुए वर्तमान पीढ़ी को विरासत के रूप में उपलब्ध होती है। अपनी निरंतरता की प्रवृत्ति के कारण यह वर्तमान पीढ़ी के विचारों को ग्रहण करके और अधिक समृद्ध होती है तथा आने वाली पीढि़यों के लिये विरासत के रूप में उपलब्ध होने को उन्मुख हो जाती है। कुचिपुड़ी नृत्यकला भी इसी सांस्कृतिक विरासत की एक कड़ी है। यह आंध्र प्रदेश राज्य का लोकनृत्य है और राज्य के कुचिपुड़ी क्षेत्र में विकसित होने के कारण इस नृत्यकला का नाम कुचिपुड़ीपड़ा।
      कुचिपुड़ी नृत्यकला भारत की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा है। इसे निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता हैः
  यह प्राचीन नृत्यकला को संरक्षित किये हुए है।
  भारत की सांस्कृतिक विविधता का परिचायक है।
  भारत का महत्त्वपूर्ण शास्त्रीय नृत्य है, जो भरत मुनि की नाट्य शास्त्र में बताई गई नृत्य विद्या को जीवंत बनाए हुए है।
  हाल ही में आंध्र प्रदेश में 7000 से भी अधिक बालिकाओं ने कुचिपुड़ी नृत्य एक साथ करके गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है। 
कुचिपुड़ी नृत्य की चारित्रिक विशेषताओं को निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता हैः
  प्रारंभ में यह केवल पुरुषों द्वारा प्रदर्शित किया जाता था। पुरुष ही महिला का वेश धारण कर नृत्य प्रस्तुत करते थे। किंतु वर्तमान में यह महिलाओं द्वारा भी प्रस्तुत किया जाता है।
  यह एक टीम भावना से प्रेरित नृत्य है। जिसका मंचन परंपरागत पूजन के पश्चात् कलाकारों के प्रवेश करने से प्रारंभ होता है।
  एक विशिष्ट लयबद्ध रचना धारवुमें प्रत्येक कलाकार अपना परिचय देता है। 
  इसके पश्चात् कर्नाटक शैली में रचित गीत विभिन्न वाद्ययंत्रों के साथ कथानक को आगे बढ़ाते हुए नृत्य का मुख्य भाग प्रस्तुत करता है।
  नृत्य के सभी कलाकार पारंपरिक शैली के आभूषण पहनते हैं।
  कुचिपुड़ी नृत्य में महिलाओं का अत्यधिक महत्त्व होता है।
  लक्ष्मीनारायण शास्त्री, स्वप्नसुंदरी, यामिनी कृष्णमूर्ति, यामिनी रेड्डी आदि कुचिपुड़ी नृत्य के विख्यात कलाकार हैं। 
निष्कर्ष:
      कुचिपुड़ी नृत्यकला की प्राचीनता और विशिष्टता इसे महत्त्वपूर्ण बनाती है। इस नृत्यकला की जीवंतता तथा सतत् समृद्ध होने के गुण के कारण यह भारतीय सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा मानी जाती है।

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