किसी व्यक्ति द्वारा स्वयं के हाथों से मानवीय अपशिष्टों (human excreta) की सफाई करने या सर पर ढोने की प्रथा को हाथ से मैला ढोने की प्रथा या मैनुअल स्कैवेंजिंग (Manual scavenging) कहते हैं। भारत में यह प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है। यह प्रथा भारत में काफी हद तक जाति-व्यवस्था से संबंधित है जिसमें यह माना जाता है कि यह तथाकथित निचली जातियों का कार्य है।
संविधान के अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता का अंत) और अनुच्छेद 46 के माध्यम से राज्य समाज के कमज़ोर वर्गों मुख्य रूप से अनुसूचित जाति और जनजाति की सामाजिक अन्याय और शोषण से रक्षा करने का उपबंध करता है।
इस दिशा में सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
→ हाथ से मैला उठाने वाले को रोज़गार और सूखे शौचालय निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993: इस अधिनियम के तहत हाथों से मैला उठाने और सूखे शौचालय के निर्माण को प्रतिबंधित किया गया है। साथ ही हाथ से मैला ढोने को संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखकर कारावास एवं आर्थिक दंड की व्यवस्था की गई है।
→ हाथ से मैला उठाने वाले के रूप में रोज़गार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013: इस अधिनियम के प्रावधान पूर्व के अधिनियम के ही समान है। अंतर इतना है कि यह हाथ से मैला उठाने वालों की पुनर्वास एवं उन्हें प्रशिक्षित करने को उपबंधित करता है।
→ हाथ से मैला उठाने वाले पुनर्वास के लिये स्व-रोज़गार कार्यक्रम: इसके योजना के द्वारा 4000 रूपए की नकद सहायता और आजीविका के लिये 15 लाख तक की राशि तक के रियायती दरों पर ऋण की सुविधा दी गई है।
→ फिर भी देश में हाथ से मैला उठाने की प्रथा मानवाधिकार को चुनौती दे रही है। इसके पीछे सरकारों की उदासीनता, तकनीक का अभाव, शुष्क शौचालयों का निर्माण और जागरूकता की कमी को देखा जाता है। सरकार द्वारा आरंभ किया गया स्वच्छ भारत अभियान के सही अनुपालन ने हाथ से मैला उठाने की समस्या को गंभीर बना दिया है। हाल ही में भारत के बड़े शहरों में सीवर सफाई के दौरान मरने वालों सफाई कर्मियों की संख्या में बढ़ोतरी देखी गई है। स्वच्छ भारत अभियान के लक्ष्य को पाने के लिये सही मानकों का अनुपालन न करना इसके लिये प्रमुख रूप से ज़िम्मेदार है।
→ अतः शौचालयों का सही तकनीक से निर्माण, सामाजिक जागरूकता, स्वच्छ भारत अभियान के दौरान विनियमों का सही तरीके से अनुपालन और मैला ढोने वालों के लिये वैकल्पिक रोज़गार की उपलब्धता इस समस्या के निराकरण में कारगर साबित हो सकते हैं।