GS Paper-2 Social Justice (सामाजिक न्याय) Part-1 (Q.45)

GS PAPER-2 (सामाजिक न्याय) Q-45
 
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Q.45 - लिंग भेदभाव महिलाओं के प्रति पूर्वधारणाओं की व्यावहारिक अभिव्यक्ति है।इस कथन के प्रकाश में भारत में लिंग भेदभाव के प्रकारों एवं कारणों का परीक्षण कीजिये।
उत्तर :
  लिंग एक जैविक आधार पर सांस्कृतिक निर्माण है। हालाँकि संस्कृति के आधार पर लोग लिंग के विषय में छवियों, मूल्यों, विश्वासों और अपेक्षाओं का एक पूरा समूह तैयार करते हैं।
  विश्व की आधी आबादी का हिस्सा होने के बावजूद महिलाओं की राजनैतिक और सामाजिक दशा शोषित और पीड़ित किसी दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय जैसी ही समझी जा सकती है। पुरुष प्रधान समाज की पारंपरिक मानसिकता स्त्रियों को घर की चारदीवारी के भीतर कैद रखने वाली और चूल्हा-चक्की तथा बच्चों की परवरिश में व्यस्त रखने वाली हो रही है।
  समाजीकरण में लिंग के अंतर की तीव्रता को संस्कृति के विभिन्न विशेषताओं से दृढ़ता से सहसंबंधित पाया जाता है। दूसरे शब्दों में लिंगों के बीच व्यवहार का अंतर विभिन्न सामाजिक प्रथाओं के कारण उत्पन्न होते हैं।
लिंग भेदभाव के रूप
  परिवार में खाना पकाने, कपड़े धोने जैसे घर के अन्य काम करने के लिये लड़कियों को ही कहा जाता है।
  व्यवसाय में महिलाओं को रिसेप्शनिस्ट, शिक्षक परामर्शदाता आदि के रूप में कार्य करने की प्राथमिकता दी जाती है।
  काम करने वाली महिलाओं से भी अपने परिवार, पति और बच्चों की देखभाल करने की अपेक्षा की जाती है।
लिंग भेदभाव के कारण
समकालीन भारतीय समाज में लिंग भेदभाव कई कारणों से व्याप्त है। इसके साथ जुड़े कुछ महत्त्वपूर्ण कारक हैं-

  शिक्षा का अभावः शिक्षा सामाजिक परिवर्तन का मुख्य साधन होता है। शिक्षा का प्रावधान ऊपर की ओर सामाजिक गतिशीलता की प्रक्रिया को गति देता है। औपचारिक शिक्षा तेजी से बदलती दुनिया में आवश्यक कौशल के साथ शक्ति प्रदान करती है।
  बाहरी दुनिया से अनभिज्ञ रहनाः महिलाओं को आमतौर पर पारिवारिक भूमिकाओं तक ही सीमित रखा गया था। घर के बाहर की दुनिया से वे अछूती रहीं। बाहरी दुनिया में संघर्ष करने के लिये आवश्यक कौशल और व्यवहार महिलाओं के लिये उपलब्ध होने चाहिए।
  पुरुषों पर निर्भरताः परंपरागत भारतीय महिलाओं को लगभग सभी चीजों के लिये पुरुषों पर निर्भर रहना पड़ता है। उन्हें बेटी, पत्नी, बहन और माँ की भूमिकाओं का निर्वहन करना पड़ता है। पिता, पति और अंत में अपने बच्चों पर निर्भरता ही महिलाओं के भाग्य का निर्माण करती रही।
  इस प्रकार की सामाजिक कुरुतियों को समाप्त करने के लिये सबसे पहले लोगों की अवधारणा को परिवर्तित करने की आवश्यकता है। परिवारों को पितृसत्तात्मक समाज की मानसिकता बदलने की आवश्यकता है। यह हमेशा कहा जाता है कि अगर एक परिवार की महिला शिक्षित होती है तो वह पूरे परिवार को शिक्षित कर सकती है।

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