भूमिका में :-
भारतीय दंड संहिता की धारा 498A में संशोधन के सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले से उत्तर प्रारंभ करें।
विषय-वस्तु में :-
धारा 498A का संक्षिप्त परिचय तथा किये गए संशोधन की चर्चा -
→ धारा 498A एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है। विधि आयोग ने सुझाव दिया था कि इसे जमानतीय धारा बना दिया जाए लेकिन महिला संगठन ऐसे होने नहीं देंगे।
→ विचारण न्यायालय को यह पता होता है कि कौन-सा केस सही है और कौन-सा केस झूठा, क्योंकि उनके द्वारा प्रतिदिन मामले की सुनवाई की जाती है।
→ विश्वसनीय आँकड़ों के अनुसार, धारा 489A के तहत पंजीकृत सही मामलों की संख्या मात्र 10 प्रतिशत है।
→ सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट यह नहीं देखता की कौन-सा केस सही है और कौन-सा झूठा। उन्हें यह दिखाई देता है कि महिला अभी भी समाज में गैर-बराबरी के दंश को झेल रही है और उसे संरक्षण दिये जाने की ज़रूरत है।
दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम 1961 और धारा 498A के अंतर -
→ धारा 498A दहेज प्रतिषेध अधिनियम की धारा 4 से अलग है क्योंकि इसमें दहेज की मांग को दंडनीय बनाया गया है और क्रूरता (cruelty) के अस्तित्व को आवश्यक तत्त्व नहीं माना गया है, जबकि धारा 498A अपराध की गंभीरता से संबंधित है।
→ यह पत्नी या उसके घर वालों से दहेज़ के रूप में रुपए या मूल्यवान वस्तु की मांग के बावत की गई मानसिक या शारीरिक क्रूरता के लिये दंडित करता है। इसलिये दहेज प्रतिषेध अधिनियम की धारा 4 तथा आईपीसी की धारा 498A दोनों के तहत व्यक्ति पर मुकदमा चलाया जा सकता है।
→ धारा 498A कानूनों में आने वाले शब्दों की व्याख्या करने और सज़ा देने के मामलों में अदालतों को व्यापक विवेकाधिकार देती है।
अंत में प्रश्नानुसार संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष प्रस्तुत करें।