मानसिक अस्वस्थता व्यक्ति के महसूस करने, सोचने एवं काम करने के तरीके को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है, जिससे व्यक्ति असामान्य व्यवहार करने लगता है। हाल में किये गए राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार भारत के लगभग 150 मिलियन लोग किसी-न-किसी मानसिक समस्या से ग्रस्त हैं। प्रत्येक बीस में से एक आदमी अवसादग्रस्त है। एक प्रतिशत जनसंख्या उच्च जोखिम के चलते अवसादग्रस्त है। यह भारत के मानसिक अस्वस्थता के गंभीर खतरे को दर्शाता है।
मानसिक स्वास्थ्य विधेयक, 2016 का उद्देश्य मानसिक रोगियों की स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने जैसे विभिन्न अधिकार प्रदान करना है। इस विधेयक के महत्त्वपूर्ण प्रावधान निम्नलिखित हैं:
→ मानसिक रोग से ग्रस्त व्यक्तियों के अधिकार- इसके तहत सरकार द्वारा संचालित या वित्तपोषित मानसिक स्वास्थ्य सेवा केंद्रों से मानसिक स्वास्थ्य देखभाल सुविधा प्राप्त करने का अधिकार है।
→ मानसिक रोगी के पास अपने उपचार एवं प्रतिनिधि के संबंध में अग्रिम निर्देश देने का अधिकार होगा, जो चिकित्सा अधिकारी द्वारा प्रमाणित होगा।
→ राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण की स्थापना का प्रावधान है।
→ आत्महत्या को अपराध के दायरे से बाहर रखा गया है।
→ मानसिक रोगियों कोे भर्ती करने तथा उनके उपचार एवं डिस्चार्ज के लिये प्रक्रिया को निर्दिष्ट किया गया है। वस्तुतः मानसिक स्वास्थ्य विधेयक मानसिक रोगियों के स्वास्थ्य के लिये अधिकार आधारित दृष्टिकोण है। इसके माध्यम से मानसिक बीमारी एवं अवसाद को सार्वजनिक विमर्श के दायरे में लाना है, जो मानसिक अस्वस्थता के गंभीर खतरे के निवारण में सहायक होगा। परंतु इसके प्रभावी होने में कुछ चुनौतियाँ भी हैं, जैसेः
→ मानसिक स्वास्थ्य पर अल्प व्यय, जो कुल स्वास्थ्य बजट का मात्र 0-06» है।
→ मनोचिकित्सकों की कमी, प्रति एक लाख लोगों पर मात्र 3 मनोचिकित्सक उपलब्ध हैं।
→ अग्रिम निर्देश के प्रावधान से बाधाएँ उत्पन्न होने का खतरा क्योंकि कई मामलों में रोगी तर्कसंगत निर्णय लेने में असमर्थ होता है।
अतः उपर्युक्त चुनौतियों को देखते हुए मानसिक स्वास्थ्य हेतु एक समग्र और एकीकृत दृष्टिकोण अपनाए जाने की आवश्यकता है। जिसमें मानसिक स्वास्थ्य विधेयक एक प्रगतिशील एवं क्रांतिकारी भूमिका निभा सकेगा।