भूमिका:
ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों के संरक्षण) विधेयक, 2016 की पृष्ठभूमि पर चर्चा -
हाल ही में लोकसभा द्वारा दो वर्ष पूर्व सदन के समक्ष प्रस्तुत किये गए ट्रांसजेंडर विधेयक को संशोधनों के साथ पारित कर दिया गया। इस विधेयक को परामर्श के लिये सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण विभाग की स्थायी समिति के पास भेजा गया था जिसने कुछ संशोधन प्रस्तुत किये थे और जिन्हें स्वीकार कर लिया गया था।
विषय-वस्तु
इस विधेयक की मुख्य विशेषताओं पर चर्चा -
यह विधेयक एक प्रगतिशील विधेयक माना जा रहा है क्योंकि इसके अंतर्गत एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति का ‘पुरुष’, ‘महिला’ या ‘ट्रांसजेंडर’ के रूप में पहचानने का अधिकार प्रदान किया गया है। इस बिल के माध्यम से ऐसी व्यवस्था लागू होगी जिससे किन्नरों को भी सामाजिक जीवन, शिक्षा और आर्थिक क्षेत्र में आजादी से जीने का अधिकार मिल सकेगा।
स्थायी समिति की रिपोर्ट
→ इसमें ‘एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति’ की परिभाषा को पुनर्परिभाषित किया गया है ताकि इसे और अधिक समावेशी और सटीक बनाया जा सके।
→ इस समुदाय के संदर्भ में भेदभाव की परिभाषा और भेदभाव के मामलों को हल करने के लिये एक शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना की सिफारिश की गई है।
→ इसमें ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को आरक्षण देने की बात भी कही गई है।
→ उभयलिंगियों को कानूनी मान्यता प्रदान करने तथा धारा-377 के तहत उन्हें सुरक्षा प्रदान करने की बात कही गई है।
→ इसमें उभयलिंगियों के लिये आरक्षण, भेदभाव के खिलाफ मजबूत प्रावधान, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ दुर्व्यवहार करने वाले सरकारी अधिकारियों हेतु दंड का प्रावधान और भीख मांगने से उन्हें रोकने के लिये कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना भी शामिल है।
→ इसमें अधिकारों और कल्याण से परे यौन पहचान से संबंधित मुद्दे को भी संशोधित किया गया है।
→ इस समिति द्वारा विधेयक में निहित अन्य कई शर्तों को फिर से परिभाषित किया गया है।
→ हिजड़ा या अरवानी समुदायों द्वारा ट्रांसजेंडर बच्चों को गोद लेने जैसी वैकल्पिक पारिवारिक संरचनाओं की पहचान के लिये परिवार को ‘रक्त, विवाह या गोद लिये गए ट्रांसजेंडर व्यक्ति से संबंधित लोगों के समूह’ के रूप में परिभाषित किया गया है।
हम भारत में ट्रांसजेंडर्स की समस्याओं पर चर्चा -
→ ट्रांसजेंडर समुदाय विभिन्न सामाजिक समस्याएँ, जैसे- बहिष्कार, बेरोजगारी, शैक्षिक तथा चिकित्सा सुविधाओं की कमी, शादी व बच्चा गोद लेने आदि की समस्या का सामना करते हैं।
→ ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को मताधिकार 1994 में मिला परंतु मतदाता पहचान-पत्र जारी करने की स्थिति में, महिला और पुरुष के प्रश्न पर यह मामला उलझ गया।
→ संपत्ति का अधिकार और बच्चा गोद लेने जैसे कुछ कानूनी अधिकार भी उन्हें प्राप्त नहीं होते।
→ समाज द्वारा अक्सर परित्यक्त कर दिये जाने की स्थिति में ये मानव तस्करी के लिये आसान शिकार बन जाते हैं।
→ अस्पताल एवं थानों में इनके साथ अपमानजनक व्यवहार किया जाता है।
→ सामाजिक तौर पर बहिष्कृत होने का मुख्य कारण है कि उन्हें न तो पुरुषों की श्रेणी में रखा जाता है और न ही महिलाओं में नतीजतन वे शिक्षा, रोजगार एवं चिकित्सकीय सुविधाओं आदि से वंचित रह जाते हैं।
निष्कर्ष:
आमतौर पर भारत में ट्रांसजेंडर्स को कलंक के तौर पर देखा जाता है। इस विधेयक के माध्यम से किन्नरों को मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिश की जा रही है, जिसके लिये वे काफी समय से प्रयत्नशील हैं। उच्चतम न्यायालय ने भी केंद्र और राज्य सरकारों को थर्ड जेंडर समुदाय के लिये कल्याणकारी योजनाएँ चलाने और इस सामाजिक कलंक को मिटाने के लिये जन जागरूकता अभियान चलाने का निर्देश दिया था।