भूमिका:
वैश्विक रूप से शिक्षा के क्षेत्र में भारत की स्थिति बताते हुए उत्तर प्रारंभ करें तो संख्या की दृष्टि से भारत की उच्च शिक्षा व्यवस्था विश्व में अमेरिका और चीन के बाद आती है परंतु गुणवत्ता के मामले में भारत के संस्थान शीर्ष 100 में भी स्थान नहीं बना पाते हैं।
विषय-वस्तु
भारत में उच्च शिक्षा की खराब स्थिति पर चर्चा -
भारत में उच्च शिक्षा की खराब स्थिति को निम्नलिखित बिंदूओं के आधार पर समझा जा सकता है-
→ भारत में उच्च शिक्षा में नामांकन दर अत्यंत कम है।
→ उच्च शिक्षण संस्थानों में मानव संसाधन की भी अत्यधिक कमी है।
→ बदलते वैश्विक परिदृश्य के अनुरूप भारत में उच्च शिक्षा का पाठ्यक्रम नहीं बदला गया है।
→ इन संस्थानों में स्वायत्तता की कमी है।
→ शोध कार्यों का स्तर अत्यंत निम्न है।
→ भारत में उच्च शिक्षा की स्थिति को सुधारने के लिये विदेशी शिक्षण संस्थाओं को प्रवेश देने की मांग की जा रही है। भारत में विदेशी शिक्षण संस्थाओं के प्रवेश से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होने की संभावना व्यक्त की जा रही है।
→ उच्च शिक्षा क्षेत्र में अच्छे संस्थाओं की कमी पूरी होगी।
→ विश्व स्तर के संकाय भारत आएंगे, जिससे शिक्षा एवं शोध की गुणवत्ता सुधरेगी।
→ विदेशी शिक्षण संस्थाओं के भारत में आने पर भारत के पड़ोसी देश एवं अप्रीकी देशों के छात्र शिक्षा के लिये पश्चिम की बजाय भारत का रुख करेंगे। इससे विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होगी, जिसे शिक्षा क्षेत्र में खर्च किया जा सकता है।
→ विदेशी संस्थानों के भारत में प्रवेश से उच्च शिक्षा क्षेत्र में शिक्षण संस्थानों के मध्य एक स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा का विकास होगा, जिससे अंतत: शिक्षा की गुणवत्ता में वृद्धि होगी।
विदेशी संस्थाओं के भारत में प्रवेश के संबंध में विरोधी बातों पर चर्चा -
→ विश्व के प्रतिष्ठित संस्थान भारत में अपने परिसर नहीं स्थापित करेंगे वरन् निम्नस्तरीय संस्थान, आर्थिक लाभ को देखते हुए भारत आएंगे, इससे शिक्षा की गुणवत्ता में वृद्धि नहीं होगी।
→ इससे शिक्षा के व्यवसायीकरण की आशंका जताई जा रही है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक गरीब और अमीर की एकसमान पहुँच नहीं होगी।
→ विदेशी शिक्षण संस्थाएँ व्यावसायिक हितों के आधार पर भारत आएंगी। अत: शिक्षा के मूल उद्देश्य को भूलकर कहीं वे डिग्री बाँटने का माध्यम व बन जाएँ।
निष्कर्ष:
भारत में विदेशी शैक्षणिक संस्थाओं के आगमन से निश्चित ही कई लाभ मिलने की संभावना है, लेकिन इसके साथ ही इन संस्थाओं का आगमन कई आशंकाओं को भी जन्म देता है। अत: आवश्यक है कि शिक्षा क्षेत्र में नियामक संस्थाओं को मज़बूत और पारदर्शी बनाया जाए। इसके अलावा भारत में शिक्षा के बजट में वृद्धि की जाए तथा स्कूली शिक्षा को स्तरीय बनाया जाए, तभी भारत की उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का बनाया जा सकेगा।