→ “अमेरिका फर्स्ट” शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनाव अभियान के दौरान किया था। इसका तात्पर्य घरेलू और विदेश नीति दोनों के मामले में अमेरिका व अमेरिकावासियों को प्राथमिकता प्रदान करने से संबंधित है।
→ घरेलू स्तर पर अमेरिका फर्स्ट से तात्पर्य रोज़गार आदि के मामलों में प्रवासी कामगारों की बजाए अमेरिकी नागरिकों को वरीयता देने से है। विदेश नीति में अमेरिका फर्स्ट से तात्पर्य वैश्विक संधियों में अन्य देशों के हितों की तुलना में अमेरिकी हितों को वरीयता देने से है।
→ पेरिस समझौते से पीछे हटना, संयुक्त राष्ट्र संघ को दी जाने वाली राशि में कटौती करना, H1B वीज़ा नियमों को सख्त बनाना, ट्रांस पैसिफिक संधि से हटना और अवैध प्रवासियों को रोज़गार देने वाले एमनेस्टी प्रोग्राम को रद्द करना आदि इसी नीति के अंतर्गत उठाये गए कदम हैं।
अमेरिका फर्स्ट नीति के संभावित वैश्विक प्रभाव-
→ यह नीति वैश्वीकरण के सिद्धांतों के विपरीत है। यह पूंजी और श्रम के मुक्त वैश्विक प्रवाह को रोकती है।
→ कड़े वीज़ा नियमों के कारण भारत और अन्य एशियाई देशों के कुशल आई.टी. पेशेवरों के रोज़गार पर खतरा मंडरा रहा है।
→ पेरिस समझौते से बाहर होकर अमेरिका ने जलवायु परिवर्तन जैसी गंभीर वैश्विक समस्या को नज़रंदाज़ किया है। इससे ग्लोबल वार्मिंग कम करने के वैश्विक प्रयासों को क्षति पहुँची है।
→ ट्रांस पैसिफिक संधि से अमेरिका के अलग होने से ऑस्ट्रेलिया, वियतनाम और फिलिपींस में चीन को लेकर व्याकुलता बढ़ गई है, क्योंकि इस प्रकार के फैसले ने अमेरिका के वैश्विक नेतृत्व पर प्रश्नवाचक चिह्न लगा दिया है।
→ वैश्वीकरण विरोधी इस नीति के कारण एशिया के छोटे देशों के लिये चीन के प्रभुत्व वाले व्यापार समूह जैसे- OBOR और RCEP ज़्यादा विश्वसनीय हो गए हैं।
→ हालाँकि अमेरिका ने विश्व राजनीति में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिये कई बार अपने निजी हितों से समझौता भी किया, ताकि विश्व में आदर्शों की स्थापना की जा सके। इतिहास इस बात का प्रमाण है कि जब-जब अमेरिका ने विश्व के प्रति उदासीनता दिखाई है, तब-तब विश्व का संतुलन बिगड़ा है। अमेरिका फर्स्ट की नीति दीर्घकाल में स्वयं अमेरिका को नुकसान पहुँचा सकती है। कड़े वीज़ा नियमों से अमेरिका भविष्य में कुशल पेशेवरों की सेवाएँ प्राप्त करने से वंचित रह जाएगा। इस नीति से अमेरिका में नस्लवादी हिंसा भड़कने की संभावनाएँ हैं। अतः केवल अमेरिकी हितों से प्रचालित यह नीति न सिर्फ विश्व को बल्कि स्वयं अमेरिका को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगी।