लैटिन अमेरिकी देशों से संबंधों की व्याख्या -
→ 1990 के पश्चात् वैश्वीकरण के दौर में भारत ने अपनी विदेश नीति में महत्वपूर्ण परिवर्तन करते हुए इसमें में गुटनिरपेक्षता के साथ-साथ व्यावहारिक एवं पहलकारी तत्त्व भी जोड़ लिये; जिसका प्रमाण लगभग सभी देशों से द्विपक्षीय संबंध एवं विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर बढ़ती भारत की भूमिका से मिलता है।
→ ‘योग’ द्वारा ‘सॉफ्ट पॉवर’ के रूप में प्रसार की बात हो या पेरिस जलवायु सम्मेलन में साझी किंतु भिन्न ज़िम्मेदारी की अवधारणा संबंधी, विश्व व्यापार संगठन में विकासशील देशों के हित संबंधी मुद्दे हों या संयुक्त राष्ट्र में बदलाव संबंधी, एमटीसीआर समूह में सदस्यता एवं विभिन्न देशों से ‘परमाणु संधि’ के संदर्भ में भारत ने स्वयं को उभरती शक्ति के रूप में प्रदर्शित किया है।
→ इसी क्रम में भौगोलिक रूप से दूर तथा समानता के तत्वों के अभाव में द्विपक्षीय संबंधों की उदासीनता से ग्रस्त लैटिन अमेरिकी देशों के साथ परस्पर सहयोग बढ़ाकर द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने पर विशेष बल दिया गया।
→ इन संबंधों को हाल में संपन्न निम्नलिखित समझौतों एवं अन्य सहयोग के तत्वों के माध्यम से समझा जा सकता हैः
→ लैटिन अमेरिका का सबसे महत्त्वपूर्ण एवं बड़ा देश ‘ब्राजील’ भारत का विभिन्न मंचों पर समर्थक है। ‘ब्रिक्स’ समूह की समान सदस्यता के साथ-साथ ब्राजील भारत द्वारा प्रस्तावित ‘सौर ऊर्जा गठबंधन’ का भी सदस्य बना है। इसके अतिरिक्त भारत में दाल की कमी को पूरा करने के लिये ब्राजील से लगातार सहयोग एवं व्यापार संबंधी वार्ताएँ की जा रही हैं।
→ पराग्वे-उरूग्वे तथा पेरू, तीनों देशों ने 2015-17 के कार्यकाल के लिये संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद् के चुनावों में भारत की उम्मीदवारी का समर्थन किया है। जो कि इन देशों के भारत से बेहतर संबंधों का प्रमाण है।
→ भारत-उरूग्वे के मध्य दोहरे कराधान से बचाव एवं नवीकरणीय ऊर्जा संबंधी सहयोग भी द्विपक्षीय संबंधों की दृढ़ता की पुष्टि करते है।
→ प्रधानमंत्री द्वारा दक्षिण अमेरिका में IT उत्कृष्टता केन्द्र स्थापित करने के अवसर देने के बाद इक्वेडोर, कोस्टरिका तथा पेरू में केन्द्र स्थापित करने की पेशकश की गयी है।
→ हाल ही में चिली-भारत ‘अधिमान्य व्यापार संधि’ विस्तारित करने हेतु समझौता संपन्न हुआ।