भूमिका में:
समान नागरिक संहिता क्या है और संविधान में उसकी स्थिति -
→ समान नागरिक संहिता (UCC) का तात्पर्य ऐसे कानून से है जो एक राष्ट्र में सभी नागरिकों हेतु बिना धार्मिक भेदभाव के एकसमान विधान प्रस्तुत करे। यह विधान विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेना जैसे मुद्दों से जुड़ा होता है।
→ भारतीय संविधान के भाग IV (राज्य के नीति निदेशक तत्त्व) के अनुच्छेद 44 के तहत समान नागरिक संहिता का उल्लेख किया गया है।
विषय-वस्तु में:
→ भारतीय संविधान निर्माताओं ने राष्ट्र के तत्कालीन हालात और विभाजन के परिणामस्वरूप समाज में उत्पन्न अलगाव को देखते हुए समान नागरिक संहिता को लागू करने का दायित्व भविष्य की पीढ़ी को सौंपा और इसी उद्देश्य से इसे अनुच्छेद 44 के अधीन राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों के अंतर्गत शामिल किया।
→ लेकिन स्वतंत्रता के इतने वर्षों के पश्चात् भी भारतीय राजनीति कानून के समक्ष धर्म या लिंग के आधार पर सभी मामलों में भेदभाव समाप्त करने में असफल रही है, जिसके कारण सामाजिक असमानता, महिला उत्पीड़न, नागरिकों के विकास में बाधा आदि समस्याएँ उत्पन्न होती रहती हैं।
समान नागरिक संहिता को भारत में लागू करने में आने वाली समस्याओं के बारे में -
→ एक समान नागरिक संहिता का स्वरूप किस तरह होगा, यह कई धर्मों के व्यक्तिगत कानूनों का मिश्रण होगा या एक अलग नया कानून होगा। इस पर अभी तक कोई आम राय नहीं बन पाई है।
→ भारत में व्यक्तिगत धार्मिक कानूनों का लंबा इतिहास रहा है। अत: लोगों द्वारा एक समान सिविल संहिता को आसानी से स्वीकार नहीं किया जा सकता।
→ अनुच्छेद 44 का मूल अधिकार की तरह न्यायालय द्वारा प्रर्वतनीय न होना तथा जनता में इसकी समझ को लेकर कमी या भ्रम की स्थिति भी एक समस्या है।
→ मूल अधिकार के तहत विभिन्न धार्मिक अल्पसंख्यकों को दी गई धार्मिक स्वतंत्रता तथा उनमें सरकारी हस्तक्षेप का मुद्दा।
→ भारत की विविधता (धार्मिक एवं सांस्कृतिक) जिसके कारण विभिन्न समुदायों में समान नागरिक संहिता को लेकर वैचारिक एकता बनाने की समस्या।
→ अल्पसंख्यकों के लिये बहुसंख्यक (हिंदू) कानून थोपे जाने का डर।
→ समान नागरिक संहिता को लेकर होने वाली वोट बैंक की राजनीति।
निष्कर्ष
समान नागरिक संहिता राष्ट्रीय अखंडता को बनाए रखने और विभिन्न मतावलंबियों के बीच फैले मतभेदों को खत्म कर कानून के सामने किसी भी तरह की गैर-बराबरी को खत्म करने के लिये ज़रूरी है। इससे राष्ट्र में धर्म को आधार बनाकर होने वाले महिला उत्पीड़न में कमी आएगी और ‘जेंडर जस्टिस’ की अवधारणा को बल प्राप्त होगा। साथ ही समाज में अंधविश्वास के स्थान पर तर्कशीलता की भावना सुदृढ़ होगी जो कि सभी धर्मों में फैली कुरीतियों की समाप्ति हेतु भी समाज को जाग्रत करेगी। साथ ही यह राष्ट्र के सभी नागरिकों में एकता की भावना को प्रोत्साहित करने में भी सहायक होगी।